Shimla Haunted Tunnel 33 | यह कहानी सिर्फ़ एक डरावनी कहानी नहीं है, बल्कि हिमाचल प्रदेश की हरी-भरी वादियों में छिपे एक गहरे रहस्य (mystery) की पड़ताल है। शिमला, जो अपनी खूबसूरत पहाड़ियों और शांत माहौल के लिए जाना जाता है, अपनी दीवारों और जंगलों में कई अनसुने किस्से समेटे हुए है। इनमें से एक किस्सा, जो रोंगटे खड़े कर देता है, वह है कालका-शिमला रेलवे लाइन (Kalka-Shimla Railway Line) पर बने टनल नंबर 33 (Tunnel Number 33) का। यह सुरंग सिर्फ़ एक इंजीनियरिंग चमत्कार नहीं है, बल्कि एक दुखद और भयानक Real Ghost Story का गवाह भी है। आज हम उस सच्ची घटना पर आधारित कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिसने इस जगह को भारत की सबसे डरावनी जगहों (most haunted places in India) में से एक बना दिया। अगर आप सस्पेंस (suspense), हॉरर (horror) और Paranormal कहानियों के शौकीन हैं, तो यह कहानी आपको रात भर सोने नहीं देगी।
कहानी की शुरुआत: तीन ब्लॉगर्स और एक चुनौती | Shimla Haunted Tunnel 33
विक्रम, मानसी और अर्जुन – ये तीनों दिल्ली के युवा ट्रैवल ब्लॉगर्स (travel bloggers) थे। उनका ब्लॉग, ‘मिस्ट्री मेकर्स’, ऐसी जगहों की तलाश करता था जो रहस्यमयी और अलौकिक मानी जाती थीं। उन्होंने भारत के कई हॉन्टेड किलों (haunted forts) और जंगलों पर ब्लॉग लिखे थे, लेकिन अब उन्हें कुछ ऐसा चाहिए था जो बिलकुल अलग और अनोखा हो।
एक दिन, विक्रम को अपनी रिसर्च के दौरान शिमला के पास टनल नंबर 33 के बारे में पता चला। यह सुरंग एक ब्रिटिश इंजीनियर, कर्नल बड़ोग (Colonel Barog) के नाम पर बनी थी, जिसकी मौत यहीं हुई थी। लोकल कहानियों के अनुसार, कर्नल बड़ोग का भूत आज भी सुरंग में भटकता है और कभी-कभी लोगों को डराता है।
“यह एकदम परफेक्ट है! यह सिर्फ़ एक हॉन्टेड जगह नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक पूरी कहानी और इतिहास है। यह हमारे ब्लॉग के लिए बिलकुल नया कंटेंट (content) होगा।” विक्रम ने उत्साहित होकर कहा।
“लेकिन क्या यह सुरक्षित (safe) है?” मानसी ने थोड़ी चिंता से पूछा। “मैंने इंटरनेट पर पढ़ा है कि यहाँ कई लोगों के साथ अजीब घटनाएं (incidents) हुई हैं।”
“अरे! ये सब तो हर हॉन्टेड जगह के बारे में कहा जाता है। हम अपनी सारी तैयारी के साथ जाएँगे,” अर्जुन ने आत्मविश्वास से कहा।
उन्होंने तुरंत शिमला का प्लान बनाया। उनका मकसद था दिन में सुरंग के आसपास की जगह देखना, लोकल लोगों से बात करके कहानियाँ जानना और फिर रात में वहाँ जाकर अपनी आँखों से सच देखना।
शिमला की ठंडी रात और सुरंग का रहस्य
शिमला पहुँचने के बाद, उन्होंने एक लोकल गाइड से बात की, जिसने उन्हें टनल 33 के पास तक पहुँचाया। सुरंग के बाहर का नज़ारा बहुत ही खूबसूरत था। चारों तरफ़ देवदार के घने पेड़ थे, और हवा में एक अजीब सी ठंडक थी। लेकिन जैसे-जैसे वे सुरंग के पास पहुँचे, माहौल में एक अजीब सा सन्नाटा पसर गया।
“यह सुरंग 1143 मीटर लंबी है और इसे बनाने में 6 महीने लगे थे,” लोकल गाइड ने बताया। “लेकिन इसे बनाने की कहानी बहुत दुखद है।”
उसने उन्हें कर्नल बड़ोग की पूरी कहानी सुनाई। कर्नल बड़ोग को ब्रिटिश सरकार ने इस सुरंग को बनाने का काम सौंपा था। उन्होंने दोनों तरफ़ से खुदाई शुरू की, लेकिन उनकी गणना में गलती हो गई। दोनों छोर बीच में नहीं मिले। ब्रिटिश सरकार ने कर्नल की कड़ी आलोचना की और उन पर जुर्माना लगाया। यह अपमान कर्नल बड़ोग सहन नहीं कर पाए। वह बहुत निराश और उदास हो गए। एक दिन, जब वह सुरंग के बाहर अकेले टहल रहे थे, तो उन्होंने अपनी ही बंदूक से खुद को गोली मार ली। उनकी मौत के बाद, एक और इंजीनियर, एच.एस. हरिंगटन, ने इस सुरंग का काम पूरा किया, लेकिन कर्नल बड़ोग की आत्मा यहीं रह गई।
गाइड ने बताया, “लोग कहते हैं कि रात में कर्नल बड़ोग की आत्मा यहाँ टहलती है। कुछ लोगों ने उन्हें ब्रिटिश सैनिक की वर्दी में देखा है, तो कुछ ने उन्हें यहाँ की हवा में चलते हुए महसूस किया है। यहाँ कई बार किसी के रोने की या किसी की धीमी फुसफुसाहट की आवाज़ सुनाई देती है।”
विक्रम, मानसी और अर्जुन ने ध्यान से सब कुछ सुना। अब उनके लिए यह सिर्फ़ एक ब्लॉग पोस्ट का विषय नहीं था, बल्कि एक गंभीर और रहस्यमयी मामला था।
आधी रात को सुरंग में प्रवेश | Shimla Haunted Tunnel 33
शाम होते-होते, गाइड उन्हें छोड़कर चला गया। सूरज ढल चुका था और चाँदनी की हल्की रोशनी चारों तरफ़ फ़ैल रही थी। तीनों ने अपने बैग से टॉर्च, कैमरा और कुछ सेंसर वाले उपकरण निकाले। उन्होंने रात 11 बजे का इंतज़ार किया, जब आख़िरी ट्रेन भी गुज़र चुकी थी।
“चलो, अब अंदर चलते हैं,” विक्रम ने धीरे से कहा। मानसी ने अपने गले में एक छोटा सा क्रॉस पहना हुआ था और वह भगवान का नाम ले रही थी। अर्जुन अपने कैमरे को तैयार कर रहा था।
जैसे ही वे सुरंग के मुहाने पर पहुँचे, उन्हें एक अजीब सी ठंडक महसूस हुई, जैसे किसी ने अचानक एयर कंडीशनर चला दिया हो। सुरंग के अंदर से एक अजीब सी हवा बाहर आ रही थी, जिसमें एक अजीब सी गंध थी, जैसे पुरानी मिट्टी और ज़ंग की मिली-जुली गंध।
उन्होंने टॉर्च जलाई और अंदर की तरफ़ बढ़ने लगे। सुरंग के अंदर का नज़ारा बहुत ही डरावना था। ऊँची-ऊँची दीवारें और चारों तरफ़ गहरा अँधेरा। उनकी टॉर्च की रोशनी सिर्फ़ कुछ ही मीटर दूर तक जा पा रही थी। दीवारों पर पानी टपक रहा था, जिससे एक धीमी, लयबद्ध आवाज़ आ रही थी।
“यार, ये तो बहुत डरावना है,” मानसी ने फुसफुसाते हुए कहा। तभी, उन्हें अपने पीछे से किसी के चलने की आवाज़ सुनाई दी। वे सब चौंक गए और पीछे मुड़कर देखा। कोई नहीं था। अर्जुन ने अपने कैमरे का नाइट विजन (night vision) मोड ऑन किया, लेकिन कैमरे में भी कुछ नहीं दिख रहा था।
“शायद यह हमारी कल्पना है,” विक्रम ने कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में भी घबराहट थी।
वे आगे बढ़ते गए। लगभग 500 मीटर अंदर जाने के बाद, उन्हें एक अजीब सी फुसफुसाहट सुनाई दी। ऐसा लगा जैसे कोई उनसे बात करने की कोशिश कर रहा हो। आवाज़ बहुत धीमी थी, लेकिन साफ़ सुनाई दे रही थी। “मैं कहाँ हूँ…?” “मुझे… धोखा दिया गया…”
यह सुनकर तीनों के रोंगटे खड़े हो गए। यह कोई रिकॉर्डिंग या हवा का असर नहीं था। यह एक पुरुष की आवाज़ थी, जो उदास और निराश लग रही थी। अर्जुन ने तुरंत अपना कैमरा आवाज़ की दिशा में घुमाया। तभी, कैमरे की स्क्रीन पर एक सफेद सी धुँधली आकृति दिखाई दी, जो धीरे-धीरे उनके पास आ रही थी।
“यह… यह तो वही है,” मानसी ने डर से कहा।
अँधेरे में एक दर्दनाक सच्चाई
जैसे ही वह सफेद आकृति उनके पास आई, वह एक ब्रिटिश सैनिक की वर्दी में एक बूढ़े व्यक्ति में बदल गई। उसका चेहरा बहुत ही उदास था, और उसकी आँखें खाली थीं। यह कोई हॉरर फ़िल्म (horror film) का सीन नहीं था, यह हकीकत थी। वह व्यक्ति कर्नल बड़ोग का भूत था।
कर्नल बड़ोग ने उनकी तरफ़ देखा और एक धीमी, दर्द भरी आवाज़ में कहा, “तुम लोग मेरे रास्ते में क्यों आए हो? मुझे मेरी शांति चाहिए…”
उसकी आवाज़ सुनकर मानसी बेहोश होकर ज़मीन पर गिर पड़ी। विक्रम और अर्जुन डर से काँप रहे थे। उन्होंने अपनी टॉर्च और कैमरा छोड़ दिया और भागने की कोशिश की, लेकिन उनके पैर जाम हो गए थे।
कर्नल बड़ोग ने आगे बढ़कर अर्जुन के कंधे पर हाथ रखा। उसका हाथ बहुत ही ठंडा था, जैसे बर्फ़ हो। अर्जुन को महसूस हुआ जैसे उसकी आत्मा उसके शरीर से बाहर खींची जा रही हो। उसकी आँखें लाल हो गईं और वह दर्द से चीखने लगा।
“मैं… मैं… हार गया,” अर्जुन ने दर्द से कहा। “उन्होंने… मुझे… धोखा दिया।” वह कर्नल बड़ोग की तरह बातें करने लगा था। विक्रम ने तुरंत अर्जुन के कंधे से कर्नल के हाथ को हटाने की कोशिश की, लेकिन उसका हाथ पत्थर की तरह भारी था।
विक्रम ने हिम्मत करके चिल्लाया, “कर्नल! हम आपको यहाँ परेशान करने नहीं आए हैं! हम बस आपकी कहानी जानना चाहते हैं! प्लीज़ हमें जाने दीजिए!”
उसकी आवाज़ सुनकर कर्नल बड़ोग ने अर्जुन के कंधे से हाथ हटाया। अर्जुन ज़मीन पर गिर गया और बेहोश हो गया। कर्नल ने विक्रम की तरफ़ देखा, उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी।
“तुम… मेरी कहानी जानना चाहते हो?” कर्नल ने धीमी आवाज़ में कहा। “मेरी कहानी यहीं खत्म हो गई थी… जब मुझे धोखा दिया गया… जब मुझे अपमानित किया गया… मुझे सिर्फ़ मेरी सुरंग चाहिए…”
अचानक, कर्नल बड़ोग की आकृति हवा में गायब हो गई और सुरंग में एक तेज़ हवा का झोंका आया, जिससे उनका सारा सामान हवा में उड़ने लगा। विक्रम ने किसी तरह मानसी और अर्जुन को उठाया और उन्हें लेकर सुरंग के मुहाने की तरफ़ भागा।
वापसी और एक अनसुलझा रहस्य
जैसे-तैसे वे सुरंग से बाहर निकले। रात का अँधेरा अभी भी गहरा था, लेकिन वे महसूस कर रहे थे कि वे मौत के मुँह से वापस आए हैं। उन्होंने अपनी बाइक स्टार्ट की और मसूरी की तरफ़ भागे। अगले दिन सुबह उन्होंने अर्जुन और मानसी को एक डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने कहा कि अर्जुन का मानसिक संतुलन थोड़ा बिगड़ गया है और उसे आराम की ज़रूरत है। मानसी को भी गहरा सदमा लगा था।
विक्रम ने अपने ब्लॉग पर वह कहानी लिखी, जो उसने कर्नल बड़ोग से सुनी थी। उसने पूरी घटना को विस्तार से बताया, लेकिन लोगों को लगा कि यह सिर्फ़ एक फैंटेसी (fantasy) है। कोई भी इस पर विश्वास नहीं कर पाया।
आज भी, जब कोई ट्रेन टनल 33 से गुज़रती है, तो कई यात्रियों को एक अजीब सी ठंडक महसूस होती है। कुछ लोगों ने दरवाज़े पर किसी के नाखून की खरोंच की आवाज़ सुनी है, और कुछ ने दूर से एक ब्रिटिश सैनिक की धुँधली परछाई को देखा है, जो हमेशा अपनी सुरंग के बाहर उदास खड़ा रहता है।
विक्रम, मानसी और अर्जुन अब भी दोस्त हैं, लेकिन उन्होंने कभी भी किसी और रहस्यमयी जगह की तलाश नहीं की। वे जानते हैं कि कुछ कहानियाँ सिर्फ़ कहने के लिए नहीं होतीं, बल्कि उन्हें महसूस करने और अनुभव करने के लिए होती हैं। और कर्नल बड़ोग की कहानी सिर्फ़ एक दुखद अंत नहीं था, बल्कि एक ऐसी आत्मा का दर्द था, जो आज भी उस सुरंग में अपनी पहचान और सम्मान की तलाश में भटक रही है।