छाया घाट की रहस्यमयी रात – भाग 8
सिद्धार्थ की पकड़ इतनी मज़बूत थी कि श्वेता की कलाई नीली पड़ने लगी। उसके मुँह से जो आवाज़ निकल रही थी, वो इंसानी नहीं लग रही थी —
“तुम सबने मुझे बुलाया था… अब कोई नहीं बचेगा…”
नेहा ने काँपते हाथों से एक दिया जलाया जो उन्होंने मंदिर के पास से लाया था।
“उसका डर मत देखो… उसकी आँखों में मत देखो…” — बूढ़ी औरत ने चिल्लाया।
श्वेता ने हिम्मत करके सिद्धार्थ की आँखों से नज़र हटाई और जोर से ताबीज़ उसके गले में पहना दिया।
एक तेज़ चीख गूँजी — इतनी भयानक कि पूरा घाट गूंज उठा।
सिद्धार्थ का शरीर काँपने लगा… ज़मीन पर गिरकर ज़ोर से तड़पने लगा। उसकी चीखें इंसानी और परछाई वाली आवाज़ों के बीच झूलती रहीं।
नेहा ने मंत्र पढ़ने शुरू किए, जो उस बूढ़ी औरत ने सिखाए थे:
“ॐ कालभैरवाय नमः…”
“ॐ अघोराय च घोराय नमः…”
धीरे-धीरे सिद्धार्थ की आँखों की काली परछाई फीकी होने लगी।
पर तभी…
झील की ओर से एक भारी, भयानक साया उठ खड़ा हुआ — धुएँ से बना, इंसानी आकृति से बड़ा, पर चेहरा धुँधला…
“तुमने मेरी बंदी को छीन लिया… अब मैं खुद आऊँगा…”
सभी पीछे हटने लगे। बूढ़ी औरत का चेहरा पीला पड़ गया —
“ये… ये तो ‘वह’ है… छाया घाट का रक्षक, जिसे वर्षों पहले बाँधा गया था…”
आदित्य फुसफुसाया,
“अब क्या सिर्फ सिद्धार्थ ही खतरे में नहीं है… हम सब हैं…!”