Emotional Story in Hindi | नमस्ते दोस्तों, एक बार फिर से स्वागत है आपका हिंदी हॉरर स्टोरी में। आज मैं आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूँ जो कि हॉरर के साथ-साथ थोड़ी भावनात्मक कहानी भी है… आज तक आपने जितनी भी भूतों की कहानियाँ पढ़ी या सुनी होंगी, उससे यह बिल्कुल अलग है। यह एक ऐसी कहानी है जिसमें एक पिता की आत्मा अपने बच्चे से मिलने के लिए तड़पती है, और कैसे गुस्सा एक पूरे परिवार को ख़त्म कर सकता है, यह इस कहानी में दर्शाता है। यह कहानी हमारे एक पाठक ने हमें ईमेल के ज़रिए भेजी है जिसे मैं अपने ब्लॉग पर प्रकाशित कर रहा हूँ। तो चलिए शुरू करते हैं इस अनोखे अनुभव को।
यह कहानी सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं, बल्कि मानवीय क्रोध के उस भयावह रूप की दास्तान है, जो अपने ही अपनों को निगल जाता है। यह एक ऐसे पिता की आत्मा की अदम्य तड़प है, जो अपने मासूम बच्चे से मिलने को बेताब है, उस बच्चे से, जिसे उसने अपनी जान से बढ़कर चाहा था।
तो आइए शुरू करते हैं इस कहानी को, पहले मैं इस कहानी के जो किरदार हैं उनके बारे में बताता हूँ:
किरदार
- अंकित: एक सीधा-साधा, शांत और मुस्कुराता हुआ इंसान। कंपनी में काम करने वाला अंकित अपनी हर पीड़ा को अपने भीतर दबा लेता था। परिवार के लिए उसका समर्पण बेजोड़ था; वह हमेशा उनके सुख के लिए कड़ी मेहनत करता था। उसकी सबसे बड़ी शक्ति उसका असीमित धैर्य था, जो अक्सर उसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी भी बन जाता था।
- साक्षी: अंकित की पत्नी, आधुनिक विचारों वाली, सोशल मीडिया पर अपनी पहचान बनाने को बेताब। उसका ज़्यादातर समय रील्स की अंतहीन दुनिया में खोया रहता था। वह दिल की तो अच्छी थी, पर उसका गुस्सा एक ज्वालामुखी की तरह था, जो छोटी-छोटी बातों पर फट पड़ता था। गुस्से में वह किसी की नहीं सुनती थी, अपने परिवार की भी नहीं। उसके मुँह से ऐसे शब्द निकलते थे जो तीरों की तरह चुभते थे। हाथ उठा देना, चीज़ें फेंक देना, और अपनी बातों के परिणामों की परवाह न करना उसकी आदत थी। उसे इस बात से फ़र्क नहीं पड़ता था कि उसकी बातें सामने वाले पर क्या असर करेंगी; वह बस बोल देती थी और कभी माफ़ी महसूस नहीं करती थी।
- देव: अंकित और साक्षी का 3 साल का नटखट बेटा। वह अपने पिता से अथाह प्रेम करता था। अंकित उसकी दुनिया था। नहाना, खाना, घूमना, और रात में सोना – देव के ये सारे काम अंकित के साथ ही होते थे। पापा के बिना उसे नींद नहीं आती थी; वह उनकी परछाई बन चुका था।
कहानी की शुरुआत | emotional story in hindi
यह कहानी जापान में शुरू होती है। जापान में बसा यह परिवार ऊपरी तौर पर काफ़ी खुशहाल दिखता था; घूमना-फिरना, फ़ैमिली के साथ एंजॉय करना सब कुछ होता था। अंकित अपनी पत्नी और बेटे से बेहद प्यार करता था। उनकी ज़िंदगी में भी पति-पत्नी के झगड़े होते थे। साक्षी जो कि बहुत ही गुस्सैल स्वभाव की थी, जब उसे गुस्सा आता था, तो ऐसा लगता था मानो प्रलय आ गया हो। वह अंकित को और उसके माता-पिता को गालियाँ देती, उनकी इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ा देती। अंकित हर बार यह सब चुपचाप सुन लेता, जैसे यह उसके रोज़मर्रा का हिस्सा हो। वह जानता था कि गुस्से में साक्षी कुछ नहीं समझती। कई बार तो वह तलाक़ की धमकी भी दे देती थी, पर अंकित को अपने बच्चे से अलग होने का डर सताता था। वह देव के बिना एक पल भी नहीं रह सकता था। इसलिए वह हर बात, हर अपमान को भगवान का नाम लेकर सह लेता था।
साक्षी झगड़ा ख़त्म होते ही अपने फ़ोन में खो जाती, रील्स स्क्रॉल करते हुए अंकित और उसके परिवार को कोसती रहती। वह अपनी ज़िंदगी की तुलना दूसरों से करती, अपने बच्चे या घर के काम से उसे कोई लेना-देना नहीं होता। बच्चे ने खाया या नहीं, उसे इसकी परवाह तक नहीं होती और वह ऐसे ही सो जाती थी।
अंकित उसे मनाने की कोशिश करता तो उसे सिर्फ़ गालियाँ और मार मिलती। साक्षी सो जाती और सुबह उठकर ऐसे बर्ताव करती जैसे पिछली रात कुछ हुआ ही न हो। अंकित को भी अब इसकी आदत हो गई थी। वह इस रिश्ते को बस निभा रहा था, अपने बेटे के लिए। प्यार था, पर अब सिर्फ़ एक दिखावा।
लेकिन धैर्य की भी एक सीमा होती है। एक गिलास में पानी उतना ही भर सकते हैं जितना उसमें समाए, ज़्यादा भरने पर वह छलक जाता है। अंकित का धैर्य भी एक दिन छलक गया।
भयानक मोड़
एक दिन, सुबह-सुबह, ऑफ़िस जाने से ठीक पहले अंकित और साक्षी के बीच एक छोटी सी बात पर भयानक झगड़ा हुआ। साक्षी ने अंकित को अपमानित करने की सारी हदें पार कर दीं। अंकित ने बहुत देर तक सुना, हर बात को टालने की कोशिश की, पर उसके भीतर कुछ टूट रहा था। थोड़ी देर बाद, साक्षी सामान्य हुई और अंकित को ऑफ़िस जाने को कहा। ऊपर से तो वह शांत दिख रही थी, पर उसके भीतर का गुस्सा अभी भी सुलग रहा था। अंकित ने भी एक फीका-सा चेहरा बनाया, साक्षी के गले लगा, और अपने प्यारे देव को प्यार कर ऑफ़िस के लिए निकल पड़ा।
इधर, साक्षी देव की देखभाल करने के बाद, अपने सोशल मीडिया की दुनिया में लौट आई। उधर, अंकित ऑफ़िस के लिए निकला तो था, पर उसका मन कहीं और था। साक्षी के कड़वे शब्द उसके कानों में बार-बार गूँज रहे थे, उसे लगातार उसकी नाकामयाबी का एहसास दिला रहे थे। वह जितना भी कमाता था, सब अपनी पत्नी और बेटे पर खर्च कर देता था। साक्षी की हर इच्छा, हर ज़रूरत को वह पूरा करता था ताकि वह खुश रहे। उसकी ज़िद पर ही वह अपने माता-पिता को छोड़कर जापान में रहने लगा था। इतना सब करने के बाद भी उसे इतने कड़वे बोल सुनने पड़ते थे। पूरा दिन ऑफ़िस में भी वह यही सब सोचता रहा। काम में उसका मन बिल्कुल नहीं लग रहा था। भीतर ही भीतर वह घुट रहा था, पर अपनी बात किसी से कह नहीं पा रहा था। उसका मन बहुत उदास था। काम समय पर पूरा न करने की वजह से उसके बॉस ने भी उसे फटकार लगाई और उसे “फ़ेलियर” कह दिया। यह शब्द “फ़ेलियर” उसके कानों में हथौड़े की तरह गूँजने लगा।
ऐसा अक्सर होता है सभी के साथ कि मन में उलझनें हों तो हर बात दुख देने लगती है।
तभी साक्षी का फ़ोन आया। अंकित ने फ़ोन उठाया। साक्षी अभी भी गुस्से में थी। उसने फिर से इसी बात पर झगड़ा शुरू कर दिया कि अंकित ने उसे आज फ़ोन क्यों नहीं किया। अक्सर अंकित साक्षी को Office से कॉल करता था पर आज उसका मन ठीक नहीं था या यह कहें कि वह बहुत दुख में था इसलिए उसने फ़ोन नहीं किया। साक्षी ने अंकित को और भी ज़्यादा बुरा-भला कहा, बार-बार उसे जताया कि वह एक “फ़ेलियर” है, उसके शौक़ पूरे नहीं कर सकता तो उसे मर जाना चाहिए, वह मर्द के नाम पर धब्बा है। यह कहकर उसने फ़ोन काट दिया और दोबारा फ़ोन करने को मना कर दिया। अंकित बस चुपचाप सुनता रहा, जैसे उसमें जान ही न हो। चूंकि वह ऑफ़िस में था, वह कुछ बोल भी नहीं सकता था। वह फिर से गहरी सोच में पड़ गया। उसे अपने अस्तित्व पर संदेह होने लगा। लगभग शाम के 7 बजे होंगे। वह बिना किसी को कुछ बोले वहाँ से उठा और ऑफ़िस के बाहर चला गया।
आज उसका घर जाने का मन नहीं था। हालाँकि ऐसे झगड़ों की उसे आदत हो चुकी थी और यह रोज़ की कहानी थी, पर आज उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। उसका मन कर रहा था कि सब छोड़-छाड़ कर कहीं चला जाए। वह बस चलता ही जा रहा था, बिना किसी मंज़िल के। तभी उसे अपने बच्चे का ख़्याल आया कि अगर वह चला गया तो बेटे को कैसे प्यार कर पाएगा, कैसे रहेगा उसके बिना। यही सब सोचते हुए वह चलता रहा। पता नहीं कब वह चलते-चलते सीढ़ियों के पास पहुँचा और लड़खड़ा कर गिर गया।
लगभग बीस सीढ़ियों से नीचे गिरा होगा अंकित। ज़मीन पर गिरने के बाद अंकित खड़ा हुआ। उसके सिर में थोड़ी चोट आई थी, उसने देखा कि थोड़ा ब्लड निकल रहा था। जिसे उसने अपने रुमाल से साफ़ किया। उसे ध्यान आया कि वह काफ़ी दूर निकल आया है, और यहाँ उसके अलावा कोई नहीं था। पर उसके दिल में जो दर्द था, उसने सब कुछ भुला दिया। वह फिर से चलने लगा, अपने रिश्ते का भारी बोझ उठाए, और एक सुनसान बस स्टैंड पर जा पहुँचा। वहाँ खड़ा होकर वह अपने बीते दिनों के बारे में, साक्षी के साथ बिताए अच्छे पलों और फिर झगड़ों में कहे उसके कड़वे शब्दों के बारे में सोचने लगा।