सुबह के उजाले में आरव जैसे जागते हुए भी सोया हुआ था। उसकी देह भारी हो चुकी थी, आँखों में सपनों और डर की चिपचिपी परतें थीं। ज़हीरा की आखिरी रात अब भी उसकी रगों में दौड़ रही थी — उसका हर स्पर्श, हर चीख, और वो लास्ट लाइन…
“अभी सिर्फ़ शुरुआत है…”

आरव ने उस दिन गाँव छोड़ने की सोची। लेकिन जैसे ही वो रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ा, उसकी नज़र सामने एक औरत पर पड़ी — घूंघट में छिपा चेहरा, लाल चूड़ियाँ, और पैरों में वही पायल जो उसने उस रात सुनी थी।
वो जैसे ही आगे बढ़ा, उसकी सांसें तेज़ होने लगीं। कदम रुकने लगे। जैसे कोई अदृश्य धागा उसकी आत्मा को वापस हवेली की ओर खींच रहा हो।
रात होने तक वो फिर उसी दरवाज़े के सामने था — कमरा नंबर 6।
लेकिन इस बार, कमरा बंद नहीं था। दरवाज़ा खुला पड़ा था। और अंदर, ज़हीरा… उसी साटन की चादर पर अधलेटी, उसकी आँखों में वही नशा और होठों पर एक भूखी मुस्कान।
“इतनी जल्दी भाग गए? मेरा पेट नहीं भरा…”
आरव उसके पास गया। लेकिन इस बार वो सिर्फ़ एक पुरुष नहीं था। वो खुद में कुछ बदलता महसूस कर रहा था — उसकी त्वचा गर्म, सांसें तेज़, और उसके अंदर कुछ जाग चुका था।
ज़हीरा ने अपनी उंगलियाँ उसकी छाती पर फिराईं, लेकिन अब उसकी पकड़ में और गहराई थी। वो उसकी गर्दन तक गई, धीरे से काटा — एक कामुक दांतों की छाप छोड़ते हुए। आरव कराहा, लेकिन पीछे नहीं हटा।
“अब मैं तुझे नहीं सिर्फ़ चाहती… मैं तुझमें उतरना चाहती हूँ,” उसने कहा।
उनका मिलन अब पहले जैसा मासूम नहीं था। ये अब एक क्रिया नहीं, अनुष्ठान था। ज़हीरा ने अपने हाथ की उंगलियों से आरव के सीने पर कुछ लिखा — खून से। और जैसे ही वह उसके अंदर समाई, आरव ने एक पल के लिए महसूस किया कि वो अब खुद नहीं रहा।
कमरे के शीशे में उसने जो देखा… वो आरव नहीं था।
उसके बाल गहरे हो चुके थे, आँखें हल्की सुर्ख़, और होंठों पर ज़हीरा की हँसी — वही हँसी जो मौत के पहले होती है।
“मैं तेरे अंदर बस गई हूँ,” ज़हीरा ने कहा।
अब हर रात, आरव खुद हवेली नहीं जाता… हवेली उसके अंदर बस चुकी है।
गाँव वाले कहते हैं, अब मोरवाड़ा के आसपास कोई जवान लड़का अकेला दिखाई नहीं देता। कोई रेलवे स्टेशन से लौटते-लौटते ग़ायब हो जाता है, तो कोई खेतों में नग्न और बेहोश मिलता है — आंखों में सिर्फ़ एक नाम:
“ज़हीरा…”
राती हवेली अब सिर्फ़ एक वीरान इमारत नहीं, बल्कि एक जीवित वासना है, जो आरव के रूप में घूमती है।
और कमरे नंबर 6 की दीवारों पर अब एक नई लकीर है — खून से बनी, गहरी, और गीली:
“हर पुरुष में एक जगह मेरी है…”,,, Aage ki kahani Page 3 Par