“तुम किसी को बता नहीं सकते… क्योंकि तुम खुद नहीं समझते कि जो हुआ, वो असली था या सिर्फ तुम्हारा दिमाग। लेकिन तुम जब तक वहाँ थे… तुम्हें हर चीज़ असली लगी। और डर… वो तो जैसे हवा में घुला था…”
🏙️ स्थान: – Real Horror Story in Hindi
मुंबई, अंधेरी ईस्ट, एक पुरानी बिल्डिंग —
जो अब ऑफिस स्पेस में तब्दील की जा रही है।
🕯️ कहानी शुरू होती है…
आशीष वर्मा, उम्र लगभग 30 साल, एक फ्रीलांस डिजिटल डिज़ाइनर।
कुछ महीनों पहले ही दिल्ली से मुंबई शिफ्ट हुआ था।
किराए का घर मिल नहीं रहा था, सो उसने एक पुरानी बिल्डिंग के खाली ऑफिस फ्लोर पर रहना शुरू किया — पाँचवीं मंज़िल का कमरा नंबर 509।
“किराया सस्ता था, और मालिक ने कहा — ‘सिर्फ दो महीने रहना, फिर रेनोवेशन चालू होगा।’”
आशीष ने ज्यादा सोचा नहीं।
कमरे में बेसिक सुविधाएं थीं — एक पुराना बेड, एक लकड़ी की टेबल, वॉशरूम, और एक बालकनी जो बाहर एक सुनसान गली में खुलती थी।
सब ठीक था… पहले हफ्ते तक।
बिल्डिंग के बाकी फ्लोर पर काम चल रहा था। मजदूर दिन में आते, रात को ताले लगाकर चले जाते।
आशीष अकेला होता था, पूरे फ्लोर पर।
रात के सन्नाटे में, वो अकसर सुनता —
- लकड़ी की चटखने की आवाज़
- छत से धीमे-धीमे चलने की आहट
- और कभी-कभी, सीढ़ियों से किसी के दौड़ने की धीमी, मगर बिलकुल असामान्य सी आवाज़।
“शायद बिल्डिंग पुरानी है, और मेरा दिमाग ज़्यादा सोच रहा है…” — आशीष खुद को समझाता।
वेलेंटाइन डे की रात थी। आशीष अपने लैपटॉप पर देर तक काम कर रहा था।
रात के करीब 2:45 बजे, वॉशरूम गया।
वॉशरूम से निकलते वक़्त, उसकी नज़र कमरे के दायें कोने में रखी पुरानी लकड़ी की अलमारी पर पड़ी — जो शुरू से ही बंद थी।
उसने नोट किया — अलमारी का दरवाज़ा थोड़ा खुला था, और जैसे भीतर से कोई सांस ले रहा हो।
“कुत्ता तो नहीं घुस गया अंदर?”
वो आगे बढ़ा… झुका… हाथ बढ़ाया…
और दरवाजा धीरे-धीरे अपने आप बंद हो गया।
बिना कोई हवा चले।
धीरे से ‘खच्च’ की आवाज़ के साथ।