दूसरा पूर्णिमा और अंधकार का बुलावा – Horror Story in hindi

मैं अब एक बार फिर जवान था।
मेरे चेहरे से झुर्रियां गायब थीं। शरीर में ऊर्जा, आत्मा में वासना की शांति।
लेकिन अब मेरे अंदर एक लालच जाग उठा था —
क्या मैं उससे दोबारा मिल सकता हूं? क्या एक और इच्छा मांग सकता हूं?
फिर आई दूसरी पूर्णिमा की रात।
मैं उसी पुराने जंगल में पहुँचा, झरने के पास, उस स्थान पर जहां पहली बार मैंने उसे देखा था।
वो फिर आई — सफेद साड़ी में लिपटी हुई।
चांद की रोशनी में उसकी देह चमक रही थी।
लेकिन इस बार वो मेरी तरफ पीठ करके बैठी थी, बिल्कुल शांत।
मैं मुस्कुराता हुआ उसकी ओर बढ़ा।
“हे देवी, मैं आ गया हूं। इस बार एक नई कामना है।”
वो उठी… धीरे से मेरी तरफ मुड़ी।
मेरी साँस रुक गई।
मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई।
उसका चेहरा सड़ा हुआ था।
आंखें लाल, जैसे अंगारे हों।
होंठ स्याह पड़ चुके थे।
और जब मैंने उसके पैर देखे — वो उल्टे थे।
“ये चंद्रलेखा नहीं थी… ये एक चुड़ैल थी!”
मैं पीछे हटने लगा, डर से कांपते हुए।
और तभी…
“अब भागेगा कहाँ विशाल?”
यह आवाज़ पीछे से आई —
“कालीनाथ!” — वही तांत्रिक, पहले से और भी जवान लग रहा था।
मेरे सामने वो चुड़ैल मंत्र पढ़ने लगी।
उसने अपने होंठों पर काले नाखून फिराए, जीभ से खून चाटा, और मुझे बाँध दिया एक सूखे वृक्ष के तने से।
उसके हाथ में एक उल्लू था — उसने उसका सिर अपने मुँह में डाला और चबा डाला।
फिर उसकी आँतें आग में फेंक दीं और ज़ोर-ज़ोर से तंत्र पढ़ने लगी।
मेरे सामने उसका शरीर बदल रहा था।
हड्डियाँ बाहर निकल आईं, आंखें चमकने लगीं, और उसके आसपास भूतों का एक झुंड इकट्ठा हो गया।
उसने मेरा सिर पकड़कर ऊपर उठाया — और अपने नुकीले नाखूनों से मेरी गर्दन अलग कर दी।
मेरा सिर जमीन पर लुढ़का… और मेरी आत्मा उसमें कैद हो गई।
कुछ देर बाद…
उसने एक स्मशान में मेरे सिर को रखा, और जब एक शव वहाँ लाया गया —
उसकी आत्मा को निकालकर मेरा सिर उसमें डाल दिया।
मैं फिर से जी उठा… पर अब मैं इंसान नहीं रहा।
अब मेरी ज़िम्मेदारी है — अगले “पूर्णिमा-युवक” को ढूंढना।
जो आज उसी ढाबे में बैठा है… शराब पी रहा है…
और अकेला है… वैसा ही जैसे मैं था…
अब मैं उसे वही सपना दिखाऊंगा —
सौंदर्य, स्त्री, वासना और फिर एक सौदा…
“यही चक्र चलता रहेगा…
जब तक उस चुड़ैल को इंसानी जन्म नहीं मिल जाता।”
👁️ अंत नहीं… शुरुआत है ये – Horror story in hindi
यह एक हॉरर रोमांटिक स्टोरी है,
जहां प्रेम वासना बन जाता है, और वासना मृत्यु को जन्म देती है।
जो देखता है — वो फँसता है।
जो छूता है — वो गिरवी पड़ता है।
और जो चाहता है — वो मर जाता है।