पार्ट 3: आखिरी ट्रेन– real Ghost story
रवि की साँसें तेज़ हो गई थीं। उसके हाथ में चाय का कप अब ठंडा हो चुका था, लेकिन उसके माथे पर पसीना बह रहा था।
“क्या मतलब… मर गई?” रवि ने काँपती आवाज़ में पूछा।
स्टेशन मास्टर ने अपनी लालटेन ऊँची की और धीमे से कहा,
“वो रोज़ इसी समय आती है। इसी ट्रैक पर। एक ट्रेन का इंतज़ार करती है… जो कभी नहीं आई।”
“क्यों?” रवि फुसफुसाया।
“क्योंकि वो ट्रेन… कभी थी ही नहीं।”
स्टेशन मास्टर ने आँखें झुका लीं, जैसे अतीत का कोई बोझ उठा रहा हो।
“लड़की का नाम शालिनी था,” उसने कहना शुरू किया।
“कोलियापुर की रहने वाली। एक रात, दस साल पहले, इसी स्टेशन पर खड़ी थी। दिल्ली जाने वाली ट्रेन पकड़नी थी। लेकिन टिकट क्लर्क की गलती से उसे गलत समय बताया गया। ट्रेन निकल चुकी थी। और उसने… पटरियों पर जान दे दी।”
रवि सन्न रह गया।
“उसके बाद,” बूढ़ा मास्टर बोला, “हर रात ठीक उसी समय… जब आखिरी ट्रेन की सीटी सुनाई देती है… वो दिखाई देती है। उसी जगह। वही पोशाक। वही इंतज़ार।”
रवि ने घड़ी देखी — रात के 2:47 बजे।
स्टेशन पर अजीब सी ठंड फैल गई थी।
तभी एक तेज़ सीटी की आवाज़ गूंजी।
रवि और स्टेशन मास्टर दोनों ट्रैक की ओर मुड़े।
लेकिन ट्रैक… खाली था।
कोई ट्रेन नहीं आ रही थी।
फिर भी हवा में धूल उड़ने लगी, जैसे कोई तेज़ रफ्तार चीज़ अभी-अभी गुज़री हो।
और फिर… फिर से वही लड़की दिखाई दी।
अबकी बार वो रवि की ओर देख रही थी। उसकी आँखें… काली, गहरी और दर्द से भरी हुई।
स्टेशन मास्टर ने डर के मारे पीछे हटते हुए कहा,
“हमें यहाँ से जाना चाहिए… अभी!”
रवि पीछे मुड़ा, लेकिन उसके पैर जैसे ज़मीन से चिपक गए थे।
शालिनी अब ट्रैक से उतर कर प्लेटफॉर्म पर आ रही थी। धीरे-धीरे। सीधी रवि की ओर।