पार्ट 6: अधूरी मोहब्बत का करार
शालिनी की आत्मा ने रवि की कलाई को पकड़ रखा था — ठंडी, जमी हुई पकड़ जिसने उसकी नसों को सुन्न कर दिया।
रवि डर और भ्रम के बीच फंसा हुआ था।
“मैं तुम्हारे साथ नहीं जा सकता… मैं मरना नहीं चाहता…” वह कांपती आवाज़ में बोला।
शालिनी के चेहरे पर कुछ पल के लिए दर्द उभरा —
“मैंने भी नहीं चाहा था… लेकिन मेरा इंतज़ार कभी खत्म नहीं हुआ… अब मेरा प्रेम अधूरा नहीं रहेगा।”
अचानक स्टेशन की ज़मीन कांपने लगी।
प्लेटफॉर्म पर लगी बत्तियाँ बुझ गईं और एक पुरानी, जंग लगी ट्रेन की सीटी सुनाई दी।
एक काली ट्रेन प्लेटफॉर्म नंबर 3 पर रुक गई — बिना इंजन के, बिना यात्रियों के।
शालिनी ने रवि की ओर देखा —
“यह मेरी ट्रेन है। एक बार चढ़ गए… तो फिर वापस नहीं आ सकते।”
रवि ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन वो हिल भी नहीं पा रहा था। उसके मन में एक ही सवाल गूंज रहा था —
क्या यह उसकी किस्मत थी? या कोई सजा?
“शालिनी, मैं तुम्हारा नहीं हूँ… मैं कोई और हूँ…” वह चीखा।
शालिनी कुछ पल शांत रही, फिर धीरे से बोली —
“अगर तुम वही नहीं हो… तो क्यों हर रात मेरे सपनों में आते हो? क्यों तुम्हारी आँखों में वही डर है जो उस दिन था?”
ट्रेन का दरवाज़ा खुद-ब-खुद खुल गया। एक स्याह अंधकार रवि की ओर बढ़ने लगा।
तभी…
स्टेशन मास्टर फिर से वहाँ आ गया — हाथ में वही लालटेन लिए।
“रवि! मत जाना! वो तुम्हारी आत्मा को कैद करना चाहती है!”
एक झटके में सब कुछ रुक गया। शालिनी गायब हो गई। ट्रेन भी। बस एक गहराई छा गई — और रवि ज़मीन पर गिर पड़ा।
स्टेशन मास्टर ने उसे उठाया और कहा —
“तुमने उसकी सच्चाई देख ली है। अब तुम्हारे पास एक मौका है — उसे मुक्त करने का… या खुद फँसने का।”