पार्ट 7: स्टेशन मास्टर की सच्चाई
स्टेशन मास्टर ने रवि को बेंच पर बैठाया, और धीरे से लालटेन की लौ तेज़ की।
“अब समय आ गया है कि तुम सच्चाई जानो…” वो बोला।
“कौन हो तुम?” रवि ने कांपती आवाज़ में पूछा।
“मैं वही हूँ जो हर रात यहाँ खड़ा होता है… पर कोई देखता नहीं।”
स्टेशन मास्टर की आँखों में एक अजीब चमक थी।
वो आगे बढ़ा और एक पुराना अख़बार रवि को थमा दिया।
अख़बार की हेडलाइन थी: “1956 – ट्रेन दुर्घटना में प्रेमी युगल की मौत – आत्महत्या या हत्या?”
रवि की आँखें चौंधिया गईं।
नीचे एक फोटो थी — शालिनी और… वही स्टेशन मास्टर!
“ये तुम हो?” रवि हक्का-बक्का रह गया।
स्टेशन मास्टर ने सर झुकाया —
“हाँ… मैं ही रमेश हूँ। शालिनी से मेरा प्यार सच्चा था, लेकिन समाज ने हमें अलग कर दिया। उसी रात… हमने साथ मरने का निर्णय लिया।”
“लेकिन तुम तो… ज़िंदा हो?” रवि बोला।
“नहीं, मैं भी मर चुका हूँ। पर मेरी आत्मा बंध गई इस स्टेशन से… और शालिनी की आत्मा… वो भटकती रही… हर रात उसी ट्रेन का इंतज़ार करती रही… जो हमें एक साथ ले जाती।”
रवि अब सब समझ गया था।
पर एक सवाल अभी भी बाकी था — शालिनी को मुक्ति कैसे दिलाई जाए?
स्टेशन मास्टर बोला —
“केवल वही कर सकता है जो उसकी आत्मा से जुड़ गया है… अब वो तुम हो, रवि।”
रवि की रूह काँप गई —
“लेकिन मैं क्यों? मैं तो बस एक मुसाफिर हूँ!”
“नहीं… तुम उसके पुनर्जन्म हो… और यही कारण है कि उसने तुम्हें पहचाना। अब या तो तुम उसे समझाकर मुक्त करो… या फिर उसके साथ बंध जाओ… हमेशा के लिए।”