Vasna Ki Chhavn Mein Shapit Kuan Part 2 – Erotic Horror Story in Hindi

वासना में डूबा बंसी शिंदे उस रहस्यमयी स्त्री के साथ एक अंधकारमयी मिलन में उतरता है, जो केवल देह का नहीं, आत्मा का भी समर्पण है। शापित कुएँ की काली परछाइयाँ अब उसकी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुकी हैं।
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🩸 भाग 2 – वासना की दीक्षा – Erotic Horror Story in Hindi

कुएँ के किनारे। उसकी आँखों में अजीब सा सम्मोहन था। उसके चेहरे का आधा हिस्सा बालों से ढका था, पर जो दिखाई देता था, उसमें क़यामत थी। उसकी कमर पर पड़ा घाघरा इतना भीगा हुआ था कि चाँदनी में उसका गीला शरीर साफ़ झलक रहा था।

“तू आया है… मुझे फिर से प्यास बुझानी है,” उसकी आवाज़ धीमी पर मदहोश करने वाली थी।

बंसी बिना कुछ बोले उसके पास पहुँचा और जैसे ही उसने उसके गाल को छुआ, स्त्री ने उसका हाथ अपने स्तनों पर रख दिया। नर्म, भारी, और गर्म… लेकिन उसमें कुछ ऐसा भी था जो इस धरती का नहीं था।

“तेरा स्पर्श मुझे जिलाता है,” उसने कहारात की नीरवता में दूर से श्मशान की अग्नि का धुंआ उठ रहा था। गाँव के अंतिम छोर पर, जहाँ इंसानी आवाज़ें भी सहमी-सहमी सी लगती हैं, वहीँ बसा था वो शापित कुआँ। बंसी ठाकुर का मन अब स्थिर नहीं रहा था। एक बार उस रहस्यमयी स्त्री से मिलकर, उसका पूरा वजूद जैसे कुछ अलग ही दिशा में मुड़ गया था। वह केवल देह की भूख नहीं महसूस कर रहा था… ये उससे कहीं ज़्यादा था।

कुएँ की ओर उसके कदम जैसे खुद-ब-खुद चल पड़े। उसका शरीर काँप रहा था लेकिन डर से नहीं, बल्कि किसी अग्यात वासना की उत्तेजना से। उसके मन में अब सिर्फ़ एक ही छवि बार-बार घूम रही थी — लाल घाघरा पहने, गीले बालों से चेहरा छिपाए वो स्त्री, जिसकी आँखों में आग थी और होठों पर गीला आमंत्रण।

वो फिर वहीं खड़ी थी — , और अपने होठों को बंसी की गर्दन पर टिकाया। उसकी सांसें बंसी की त्वचा पर गर्म लहरों की तरह दौड़ गईं।

उसने बंसी को एक पत्थर पर बिठाया और खुद उसके पैरों के बीच बैठ गई। उसकी आँखें अब लाल हो गई थीं। वो धीरे-धीरे बंसी की धोती खोलने लगी। उसकी उंगलियाँ लंबी और ठंडी थीं, लेकिन जिस तरीके से वो उसे छू रही थी उसमें कामुकता की सारी सीमाएँ टूट रही थीं।

जब उसका लिंग पूरी तरह उभर गया, वो उसे देखने लगी — ऐसे जैसे कोई भूखी पिशाचनी ताज़ा मांस को देखती है। उसने बंसी के लिंग पर अपनी जीभ फेरना शुरू किया — धीरे-धीरे… ऊपर से नीचे तक, उसके आस-पास हल्का धुँधलका छा गया।

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बंसी की आँखें मुंद गईं। वो दुनिया भूल चुका था। वो केवल महसूस कर रहा था — उसकी जीभ, उसके होठ, और उसके स्तनों की नर्मता जो बार-बार उसके सीने से टकरा रही थी।

“आज मैं पूरी तरह तुझमें समा जाऊँगी… और तू मुझमें,” उसने कहा, और अपनी घाघरा ऊपर खिसकाया। वो पूरी तरह नग्न थी। उसकी योनि से एक तेज़, पर नशीली गंध आ रही थी। उसका शरीर ठंडा था, पर उसकी देह की भूख गर्म थी।

उसने खुद को बंसी के ऊपर बैठा लिया — धीरे-धीरे उसका लिंग उसकी योनि में समा गया।

“आह… तेरा ताप मेरी सर्दी को जला रहा है,” वो बोली और उसके ऊपर थिरकने लगी। हर थ्रस्ट के साथ उसका चेहरा और विकृत होता जा रहा था — उसकी आँखें सफेद हो चुकी थीं, जबड़े लंबे हो रहे थे, और उसकी पीठ पर हल्की-सी रेखा से खून रिस रहा था।

लेकिन बंसी को कुछ फर्क नहीं पड़ा। उसके लिए ये अब किसी देह का नहीं, आत्मा का मिलन था। वो उस स्त्री के साथ जुड़ रहा था — सिर्फ योनि में नहीं, उसके वजूद में।

उसने स्त्री के स्तनों को अपने मुँह में लिया, लेकिन तभी कुछ टपका — वो खून था। लेकिन उस स्त्री ने एकदम से अपनी कमर हिलाई और कहा, “ये तेरी दीक्षा है, बंसी… मेरा खून अब तुझमें बहेगा।”

उसका शरीर थरथराने लगा। उसके कानों में अब किसी स्त्री की कराहट, किसी बच्चे की चीख, और मंत्रों की आवाज़ गूंजने लगी। वो जोर-जोर से चिल्लाने लगा, लेकिन वो स्त्री तब भी उस पर सवार थी — उसकी चाल तेज़ होती जा रही थी… और बंसी की चेतना डूबती जा रही थी।

अचानक, बंसी की आँखें सफेद हो गईं। वो बेहोश हो गया।

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती…

कुछ घंटों बाद, बंसी ने अपनी आँखें खोलीं। वो अब कुएँ के पास नहीं, बल्कि एक वीरान हवेली में था। चारों ओर कालिख, फटी दीवारें और हवा में अजीब-सी सड़ांध। लेकिन सामने वही स्त्री बैठी थी — अब ज़्यादा नग्न, ज़्यादा विकृत और ज़्यादा कामुक।

उसने कहा, “अब तू इस वासना की हवेली का हिस्सा है। यहां हर कोना चीखों से गूंजता है… सुख की भी और पीड़ा की भी।”

बंसी की आँखों में अब भय नहीं था, बल्कि वासना का नशा था।

वो उठकर उसके पास गया और खुद को उसके शरीर से चिपका दिया। उनके बीच एक और मिलन शुरू हुआ — लेकिन इस बार चारों ओर से अनदेखी परछाइयाँ उनकी देह को छू रही थीं। कई स्त्रियों की चीखें, हँसी और सिसकियाँ हवेली में गूंज रहीं थीं।

ये अब कोई साधारण संसर्ग नहीं था — यह एक रूहानी बलि थी। बंसी का लिंग अब उसके शरीर से नहीं, उसकी आत्मा से जुड़ा था। वो स्त्री अब उसे आत्मा से चूस रही थी… हर स्खलन के साथ वो कमजोर होता जा रहा था, और वो और भी प्रबल।

“मैं तुझे पूरा निचोड़ूँगी… फिर तेरा बीज किसी और में बोऊँगी… ताकि एक और बंसी जन्म ले।”

सुबह गाँव वालों ने कुएँ के पास उसका शरीर देखा — नग्न, शांत और उसके होठों पर मुस्कान थी। लेकिन उसकी छाती पर किसी औरत के नाखूनों के गहरे निशान थे… जैसे किसी जानवर ने उसे चीर डाला हो।

कहते हैं, अब वो कुआँ सिर्फ़ एक चुड़ैल का निवास नहीं — बंसी भी वहाँ है। जब अगली अमावस्या आएगी, जब कोई और लालच में आएगा… वो दोनों फिर सामने आएँगे… एक नई देह, एक नई आत्मा के लिए।

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