भाग 10: अंतिम टकराव – Real horror story in hindi
हम सबने टॉर्चें उठाईं और तहख़ाने की ओर बढ़े। ज़मीन पर जाले, गिरी हुई ईंटें और धूल की मोटी परत थी। तान्या की आँखें अब भी लाल थीं, जैसे किसी और की आवाज़ उसमें बोल रही हो।
सीढ़ियाँ नीचे जाती थीं — हर कदम के साथ अंधेरा और भारी होता जा रहा था। नीचे पहुँचते ही एक सड़ी हुई लकड़ी का दरवाज़ा मिला… और उस पर किसी ने कील से लिखा था — “राधा की राख यहाँ सो रही है”
हमने दरवाज़ा खोला… अंदर एक पुरानी आग की चिता जैसी संरचना थी… और उसके चारों ओर अधजले कंकाल।
अचानक दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया। टॉर्चें बंद हो गईं। फिर वही बड़बड़ाती आवाज़ गूँजी — “तुमने देखा… अब तुम भी जलोगे…”
तान्या की आँखों से आंसू बहने लगे, लेकिन उसने खुद को संभाल लिया।
“राधा!” उसने चिल्लाकर कहा, “हमें माफ़ कर दो! हम वो नहीं हैं जिन्होंने तुम्हें जलाया… लेकिन हम तुम्हारी कहानी दुनिया को बताएँगे… तुम्हें इंसाफ़ मिलेगा!”
कुछ पल सन्नाटा रहा… फिर आग की लौ बुझने लगी, और दरवाज़ा अपने आप खुल गया।
हम सब दौड़कर बाहर निकले। हवेली अब जैसे ढहने लगी थी… दीवारों में दरारें आ गई थीं, और उसकी छत भरभराकर गिर गई।
हवेली अब मिट्टी में मिल चुकी थी।
समाप्ति के बाद…
कुछ महीने बाद, हमने उस डायरी के आधार पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई — “राधा की आख़िरी पुकार”। लोगों ने देखा, सुना… और पहली बार, एक भटकी आत्मा को इंसाफ़ मिला।
लेकिन कहते हैं, उस राख को जो हमने तहख़ाने में छोड़ा था… वो आज भी कभी-कभी जल उठती है… बिना आग के… बिना हवा के…
क्योंकि कुछ कहानियाँ पूरी होकर भी अधूरी रह जाती हैं।