🏜️ 1. चंदणपुरा: रेत के नीचे दबा एक रहस्य
राजस्थान की तपती दोपहरों के बीच, झुंझुनू ज़िले की एक छोटी-सी बस्ती थी — चंदणपुरा। गाँव इतना शांत था कि हर पायल की छनक और हर चूल्हे की सिसकारी दूर तक सुनाई देती थी।
गाँव के चारों तरफ फैला हुआ रेत का समंदर था, जो दिन में सोने सा चमकता और रात में काले रहस्यों सा गहराता।
गाँव के बच्चों को भूतों की कहानियाँ डराने के लिए नहीं, बल्कि सिखाने के लिए सुनाई जाती थीं।
“नील कुएँ के पास मत जाना।”
“वहाँ रात में कोई रोता है।”
“हर अमावस्या को किसी की आत्मा उसे छूने आती है।”
गाँव के बड़े-बुज़ुर्ग कहते थे कि वहाँ औरत की चीखें आती हैं। कुछ ने तो उसे घूँघट में दिखते भी देखा था — पीपल की जड़ों के पास खड़ी।
👦 2. बंसी ठाकुर: एक बेचैन आत्मा – Erotic Horror Story
गाँव में एक नौजवान था — बंसी ठाकुर। उसके पिता गाँव के सबसे पुराने जमींदारों में से थे। बंसी अब 24 का हो चला था, गठीला शरीर, गहरे सांवले रंग पर तेज़ नज़रें, और होठों के नीचे हल्की सी मुस्कान — जो हमेशा कुछ खोजती रहती थी।
लड़कियाँ उससे कतराती थीं। वो मोहब्बत नहीं करता था, सिर्फ भूख रखता था।
उसकी नज़रों में हर देह एक ज़रिया थी — अपनी वासना बुझाने का, अपने अकेलेपन को कुछ देर के लिए जला डालने का।
लेकिन गाँव में कोई भी औरत उसे ज्यादा दिन नहीं टिकती थी — कुछ डरती थीं, कुछ शर्मातीं। और कुछ कहतीं —
“उसकी आँखों में कुछ अजीब है… जैसे वो छूकर भीतर तक उतर जाना चाहता हो…”
बंसी को यह बात चुभती थी… वो चाहता था कुछ ऐसा… जो किसी और ने न पाया हो।
🔍 3. नील कुआँ — सिर्फ डर नहीं, वासना भी

गाँव से करीब दो कोस दूर, एक सुनसान ज़मीन पर था — नील कुआँ।
वो अब सूखा हुआ था, लेकिन फिर भी उसकी ईंटों में नमी थी। उसके पास एक पुराना पीपल का पेड़ था — झुका हुआ, उसके तनों से लाल धागे बंधे थे, और नीचे कुछ चूड़ियाँ और सिंदूर की डिब्बियाँ थीं।
गाँव की महिलाएं वहाँ कभी नहीं जातीं, और मर्द…?
कई गए थे, पर बदले हुए लौटे… या कभी लौटे ही नहीं।
बंसी ने बचपन से उस कुएँ के बारे में कहानियाँ सुनी थीं।
कोई कहता था — वहाँ एक औरत जलकर मरी थी।
कोई कहता — उसकी आत्मा अब देह के ज़रिए जीना चाहती है…
और कोई चुप रह जाता — सिर्फ आँखों में डर लेकर।
बंसी को ये डर अजीब रूप से आकर्षक लगता था।
“अगर वो आत्मा सच में है, और वासना से प्यास बुझाती है — तो मैं उसके लिए ही बना हूँ…”
उसने एक बार अपने आप से कहा।
🔥 4. चुनौती की शुरुआत — चौपाल की रात
एक रात गाँव की चौपाल पर बंसी, बाले, मोहन और जगराम साथ बैठे थे। बीड़ी की महक, रात की हवा, और दूर मंदिर की घंटियाँ… सब कुछ शांत था।
तभी बाले ने कहा:
“बंसी, सुना क्या? कल अमावस्या है… नील कुएँ के पास से फिर औरत की चीख आई थी।”
बंसी ने मुँह में बीड़ी डालते हुए हँसकर कहा:
“शायद कोई मर्द की प्यास में तड़प रही होगी। एक बार मुझे मिलने दो, सब ठीक हो जाएगा।”
जगराम ने फुसफुसाकर कहा:
“तू पागल है क्या? किसी को नहीं छोड़ा उसने जो गया…”
“तो इस बार मैं जाऊँगा। अकेला। आज रात। और अगर वो आत्मा मिली, तो या तो उसे भोग लूंगा… या खुद शापित बनूंगा।“
गाँव वालों ने उसे रोका, लेकिन बंसी की आँखों में जुनून था। और उस जुनून के पीछे एक गहराती हुई भूख — जो सिर्फ देह से नहीं, आत्मा से जुड़ना चाहती थी।
🌘 5. रात का सफर — पग-पग पर सन्नाटा
रात के 11:15 बजे। अमावस्या की काली रात थी। चारों ओर सन्नाटा था, सिर्फ बंसी की चप्पलों की आवाज़ और कभी-कभी झींगुरों की गूँज।
वह एक धोती में था, कमर में कुल्हाड़ी, हाथ में बीड़ी, और गले में नींबू-मिर्च की माला — माँ ने मजबूरी में पहनाई थी, उसे बचाने के लिए।
जैसे-जैसे वह कुएँ के पास जा रहा था, हवा ठंडी होती जा रही थी। उसकी त्वचा पर हर बाल खड़ा हो रहा था — पर वो डर नहीं रहा था।
वो इंतज़ार कर रहा था… उस मुलाक़ात का… जिसका वादा उसने खुद से किया था।
🌲 6. नील कुएँ का पहला दृश्य
रात के 11:45 बजे — बंसी नील कुएँ के पास पहुँचा।
चंद्रमा गायब था। रौशनी सिर्फ एक ढिबरी से थी जो उसने खुद साथ लायी थी।
उसने कुएँ के पास बैठकर आँखें बंद कीं। कुछ मिनट तक कोई हरकत नहीं हुई।
फिर — अचानक, हवा में एक गंध घुली — चंदन, लोबान और कुछ बहुत अजीब सा… जैसे गीले बालों की बू।
उसने आँखें खोलीं। सामने — धुंध में — एक परछाई थी।
✨ क्या वह आई…?
लाल घाघरा, खुले लंबे बाल, चूड़ियाँ खनकती हुईं — वो पेड़ के पीछे से झांक रही थी। उसका चेहरा धुंधला था, लेकिन उसकी चाल में एक अजीब आकर्षण था।
बंसी के रोंगटे खड़े हो गए। पर उसकी जांघों में रक्त का बहाव और तेज़ हो चुका था — वह डरा नहीं, बल्कि ललचाया।
उसके कानों में आवाज़ आई… बहुत पास से…
“तू आया है… मेरी प्यास बुझाने…?”