Real Horror Story In Hindi | रोहन एक शहरी पत्रकार था, जिसे कहानियों की तलाश थी। लेकिन वह आम कहानियाँ नहीं, बल्कि ऐसी कहानियाँ खोजता था जो इंसानी समझ से परे हों। यही वजह थी कि जब उसे उत्तराखंड के पहाड़ों में बसे एक अजीब गाँव ‘देवगढ़’ के बारे में पता चला, तो वह खुद को रोक नहीं पाया।
देवगढ़ को ‘खामोशी का गाँव’ कहा जाता था। वहाँ हर साल, अश्विन मास की पूर्णिमा को, गाँव के लोग एक अजीब रस्म निभाते थे – वे सूरज ढलने के बाद पूरी तरह खामोश हो जाते थे। कोई बात नहीं करता, कोई शोर नहीं करता, यहाँ तक कि घर में बर्तनों की आवाज़ भी नहीं आती थी। इस ‘खामोशी का व्रत’ का कारण किसी को नहीं पता था। रोहन के लिए यह सिर्फ एक रहस्य नहीं, बल्कि उसकी अगली बड़ी कहानी का शीर्षक था।
सितंबर के महीने में, रोहन अपनी पुरानी जीप से देवगढ़ पहुँचा। गाँव हरी-भरी पहाड़ियों के बीच छुपा हुआ था, और पहली नज़र में बहुत ही शांत और सुंदर लग रहा था। गाँव के लोग साधारण थे, और उन्होंने रोहन का स्वागत भी किया। एक बूढ़े आदमी, जिनका नाम दयाराम था, ने उसे अपने घर में एक कमरा दिया।
रोहन ने अपनी नोटबुक निकाली और दयाराम से सवाल करना शुरू किया, “यह खामोशी की रस्म कब से चल रही है, और क्यों?”
दयाराम की आँखें थोड़ी देर के लिए शांत हो गईं। उन्होंने कहा, “बाबूजी, यह सदियों से चली आ रही है। कहते हैं कि यह गाँव को बुरी नज़र से बचाती है। इससे ज़्यादा कुछ नहीं।”
रोहन को दयाराम की बातें अधूरी लगीं, पर वह ज़्यादा ज़ोर नहीं दे पाया। उसने सोचा, रात में वह खुद सब कुछ देखेगा।
रात की खामोशी | Real Horror Story In Hindi
जैसे ही सूरज ढलने लगा, गाँव का माहौल बदल गया। दिन की चहल-पहल, बच्चों का हँसना-खेलना, पक्षियों का चहचहाना, सब एक पल में गायब हो गया। दुकानों के शटर गिर गए और दरवाज़े अंदर से बंद हो गए। ऐसा लगा जैसे गाँव ने साँस लेना बंद कर दिया हो।
रोहन अपने कमरे की खिड़की से देख रहा था। उसे लगा जैसे वह किसी ख़ामोश फिल्म का हिस्सा बन गया हो। तभी, उसे अपने कानों में एक धीमी, फुसफुसाहट जैसी आवाज़ सुनाई दी।
“रोहन… तुम यहाँ क्यों आए हो?”
वह चौंक गया। उसने कमरे में चारों तरफ देखा, पर कोई नहीं था। आवाज़ इतनी धीमी थी कि उसे लगा कि यह सिर्फ उसका भ्रम है। उसने खिड़की बंद कर दी और बिस्तर पर लेट गया, पर फुसफुसाहट फिर से शुरू हो गई।
“तुम्हारे शहर का शोर तुम्हें शांति नहीं देता… है ना?”
इस बार आवाज़ ज़्यादा स्पष्ट थी। वह उसके दिमाग के अंदर से आ रही थी, जैसे कोई उसके विचारों को पढ़ रहा हो। रोहन के माथे पर पसीना आ गया। यह बात कोई नहीं जानता था कि वह अपनी पत्रकारिता की भागदौड़ भरी ज़िंदगी से थक चुका था।
उसने अपने कानों पर हाथ रख लिए और खुद से कहा, “यह सब बकवास है। सिर्फ़ हवा का शोर है।” पर वह जानता था कि यह हवा का शोर नहीं था। यह कोई और ही था।
अगले दिन, रोहन ने दयाराम से पूछा, “रात को गाँव में कोई आवाज़ नहीं करता क्या?”
दयाराम ने उसकी आँखों में देखा। उनकी आँखों में एक अजीब-सा डर था। “बाबूजी, रात में किसी तरह का शोर नहीं करना चाहिए। खासकर जब आवाज़ें सुनाई दें।”
यह सुनकर रोहन के रोंगटे खड़े हो गए। “आवाज़ें? आपको क्या मतलब है?”
दयाराम ने उसकी बात टाल दी और जल्दी से वहाँ से चले गए।
पुरानी डायरी का रहस्य
रोहन को अब यक़ीन हो गया था कि इस गाँव में कुछ तो गड़बड़ है। वह गाँव की लाइब्रेरी में गया, जहाँ उसे धूल से भरी एक पुरानी डायरी मिली। यह डायरी पचास साल पहले गाँव में आए एक ब्रिटिश अधिकारी, मिस्टर थॉमस, की थी।
डायरी के पन्ने पीले पड़ चुके थे, पर उनकी लिखावट साफ़ थी। थॉमस ने डायरी में लिखा था कि वह भी इस गाँव की खामोशी से प्रभावित था। उन्होंने लिखा था कि गाँव में एक बूढ़ा पुजारी था, जिसने उन्हें बताया था कि सदियों पहले, गाँव में एक भयानक हादसा हुआ था। गाँव के कुछ लोग एक पवित्र जंगल में लकड़ी लेने गए थे। वे कभी वापस नहीं लौटे। जब कुछ लोग उन्हें ढूँढने गए, तो उन्होंने एक भयानक दृश्य देखा। जंगल के बीचो-बीच एक विशाल बरगद का पेड़ था, जिसके चारों तरफ़ ज़मीन पर अनगिनत लाशें बिखरी पड़ी थीं। उन सबकी आँखें खुली हुई थीं, और चेहरे पर एक ऐसा खालीपन था, जैसे उनकी आत्माएँ छीन ली गई हों।
पुजारी ने बताया था कि उस पेड़ को ‘फुसफुसाता बरगद’ कहा जाता है। वह पेड़ आवाज़ें सुन सकता है, और जो उसके पास खड़े होकर कोई राज़ बताता है, उसकी आवाज़ हमेशा के लिए पेड़ में कैद हो जाती है। लेकिन अगर कोई आवाज़ उसके राज़ को सुन ले, तो उसकी आत्मा भी पेड़ में कैद हो जाती है। इसीलिए, रात को यहाँ कोई बात नहीं करता, कोई शोर नहीं करता, क्योंकि रात के सन्नाटे में वह पेड़ लोगों की आवाज़ें और उनके राज़ सुनता है।
रोहन डायरी पढ़ रहा था, और उसकी रीढ़ में एक सिहरन दौड़ गई। डायरी के आख़िरी पन्ने पर, थॉमस ने लिखा था कि उसे भी रात में फुसफुसाहट सुनाई देने लगी है। “यह फुसफुसाहट मेरे बारे में जानती है… यह मेरे सबसे गहरे राज़ जानती है। मुझे लगता है कि इसने मेरा नाम सुन लिया है।” डायरी वहीं पर ख़त्म हो गई थी।
फुसफुसाती रात
उस रात, रोहन डर के मारे सो नहीं पाया। उसने खिड़की से देखा तो गाँव की खामोशी और भी गहरी थी। तभी, उसके कानों में फुसफुसाहट फिर से सुनाई दी।
“तुम्हें लगता है कि तुम डर से भाग सकते हो? तुम्हें याद है, जब तुम दस साल के थे, तुमने अपने दोस्त की साइकिल तोड़ दी थी और तुमने कहा था कि यह तुमने नहीं किया? हम सब जानते हैं, रोहन… हम सब जानते हैं।”
रोहन की साँस अटक गई। यह बात कोई नहीं जानता था। यह उसका सबसे पुराना और सबसे शर्मनाक राज़ था।
आवाज़ें जारी रहीं, और हर एक आवाज़ उसके अतीत का एक काला पन्ना खोल रही थी।
“तुम्हें याद है, जब तुम रीना से प्यार करते थे, और तुमने उसे धोखा दिया था? हम जानते हैं… हम सब जानते हैं।”
ये आवाज़ें सिर्फ़ सुनसान नहीं थीं, बल्कि ये उसकी आत्मा को कुरेद रही थीं। उसे महसूस हो रहा था कि यह सिर्फ कोई आत्मा नहीं, बल्कि उसका अपना डर और पछतावा है जो उसे सता रहा है।
रोहन को अब यक़ीन हो गया था कि यह ‘फुसफुसाता बरगद’ ही इन आवाज़ों का कारण है। अगर वह उन आवाज़ों का राज़ नहीं जान पाएगा, तो वह भी पागल हो जाएगा। उसने हिम्मत जुटाई और गाँव के पीछे, जहाँ जंगल था, उस ओर चला गया।
अंतिम सामना
जंगल में अँधेरा था। पेड़ों की टहनियाँ भूतिया हाथों जैसी लग रही थीं। रोहन दिल की धड़कन के साथ चल रहा था। जैसे ही वह आगे बढ़ा, फुसफुसाहट तेज़ होती गई।
“तुम हमसे नहीं भाग सकते… तुम हमारे जैसे ही हो… हम तुम्हारे डर हैं।”
रोहन ने टॉर्च जलाई और देखा। सामने एक विशाल बरगद का पेड़ था। उसकी जड़ें ज़मीन से बाहर निकली हुई थीं, जो अजीब-सी आकृतियाँ बना रही थीं। पेड़ के नीचे, एक अजीब-सा घेरा बना हुआ था, और वहाँ कुछ पुरानी मूर्तियाँ रखी थीं।
रोहन की नज़र उस घेरे पर गई। वहाँ पर अनगिनत छोटे-छोटे कागज़ के टुकड़े थे, जिन पर अजीब भाषा में कुछ लिखा था। तभी, उसे एक और फुसफुसाहट सुनाई दी।
“रोहन… इन कागज़ों को देखो… ये सब हमारे राज़ हैं… तुम्हारी तरह, हम भी अपनी यादों से भागना चाहते थे… और इसीलिए हमने अपनी आत्माओं को इस पेड़ को दे दिया।”
रोहन ने एक कागज़ उठाया और देखा। उस पर अजीब-सी लिखावट थी, पर उसे साफ़ महसूस हुआ कि यह किसी की अधूरी इच्छा थी, किसी का खोया हुआ प्यार, किसी का अधूरा सपना। वह समझ गया। यह पेड़ आवाज़ें नहीं सुनता था। यह उन लोगों की आत्माओं को कैद करता था, जिन्होंने अपनी यादों को भूलने की कोशिश की थी। यह पेड़ उन लोगों को फुसलाता था, जो अपनी ज़िंदगी के दर्द से भागना चाहते थे, और फिर उनकी आत्माओं को अपने में समा लेता था।
रोहन समझ गया कि यह ‘खामोशी का व्रत’ डर के कारण नहीं था, बल्कि यह एक तरह की कोशिश थी अपने आप को बचाए रखने की। अगर कोई अपने राज़ या यादें किसी को बता देता, तो वह आवाज़ पेड़ तक पहुँच जाती, और वह व्यक्ति भी पेड़ में समा जाता।
तभी, उसे एक तेज़ आवाज़ सुनाई दी। वह दयाराम की आवाज़ थी, जो रोहन के पीछे खड़े थे।
“बाबूजी, आप यहाँ क्या कर रहे हैं? यह जगह बहुत ख़तरनाक है।”
रोहन ने पीछे मुड़कर देखा। दयाराम की आँखें खुली हुई थीं और वह घबराए हुए थे।
रोहन ने पूछा, “आपकी आवाज़ में इतना डर क्यों है?”
दयाराम ने रोहन की आँखों में देखा और बोले, “क्योंकि… यहाँ किसी को नहीं पता कि उसने पिछली बार अपनी बात कब बोली थी…”
इस बात को सुनकर रोहन का पूरा शरीर काँप गया। दयाराम ने भी अपनी याददाश्त खो दी थी। यह डर अब सिर्फ आवाज़ों का नहीं था, बल्कि खुद को भूल जाने का था।
अधूरी ख़ामोशी
रोहन ने सोचा कि वह भाग जाएगा। वह जितना जल्दी हो सके, इस गाँव से बाहर निकल जाएगा। वह वापस अपने कमरे में गया, सामान पैक किया, और बिना कुछ सोचे-समझे अपनी जीप में बैठ गया।
जब वह गाँव से बाहर निकल रहा था, तो उसकी जीप के शीशे पर एक अजीब सी आवाज़ आई।
“रोहन… तुम हमसे नहीं बच सकते।”
रोहन ने पीछे मुड़कर देखा, तो वहाँ कोई नहीं था। उसे लगा कि वह अपनी कल्पनाओं में फँस चुका है। वह आगे बढ़ता गया, पर फुसफुसाहट उसके साथ चलती रही।
“तुम यहाँ से भाग सकते हो… पर अपने दिमाग से नहीं… हम तुम्हारे साथ रहेंगे… हमेशा…”
आज भी रोहन शहर में है, लेकिन जब भी वह अकेला होता है, उसे रात के सन्नाटे में वह फुसफुसाहट सुनाई देती है। यह फुसफुसाहट उसे लगातार याद दिलाती है कि भले ही उसने अपनी जान बचा ली हो, लेकिन देवगढ़ की खामोशी की एक आवाज़ हमेशा के लिए उसके भीतर कैद हो चुकी है।
वह जानता है कि एक दिन, अगर वह इस आवाज़ को सुनना बंद कर देगा, तो वह भी अपनी याददाश्त खो देगा और इस दुनिया का एक खाली साया बन जाएगा।
क्या तुम्हें भी कोई आवाज़ सुनाई देती है?