Part 1: रहस्य की दस्तक (The Knock of Mystery) – Horror Story In Hindi
उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से में बसा था एक गाँव — भैरवपुर। इतिहास में दर्ज नहीं, नक्शों में गुम। कहते हैं, वहाँ एक ऐसा श्राप है जिसे सुनकर भी रूह काँप जाती है।
वहाँ कोई जाता नहीं, और जो जाता है… लौट कर नहीं आता।
साल 1998।
दिल्ली यूनिवर्सिटी के इतिहास के छात्र — आदित्य त्रिपाठी — एक रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए भारत के गुमशुदा गाँवों पर काम कर रहा था। एक पुरानी लाइब्रेरी में उसे एक धूल भरी किताब मिली — “नरबलि और भारतीय काले मंदिर”, जिसमें एक अध्याय था — “भैरवपुर: शिव का गुमनाम क्रोध”।
“यह गाँव अस्तित्व में नहीं है…” आदित्य बुदबुदाया।
पर अगले ही दिन उसे एक अनाम पत्र मिला। उस पत्र में सिर्फ इतना लिखा था:
“भैरवपुर जीवित है… और तुम्हें बुला रहा है।”
पत्र के साथ एक पुराना नक्शा भी था — हाथ से खींचा हुआ, लाल स्याही में कुछ चिन्ह बने हुए थे।
आदित्य ने बिना देर किए अपने दो दोस्तों — मीरा और रघु — के साथ एक कैमरा, डायरी और ट्रेकिंग किट ली और निकल पड़ा उस रहस्य की तलाश में।
तीन दिन की यात्रा के बाद वे पहुंचे मिर्जापुर के करीब, जहाँ आखिरी गाड़ी रुकती थी। वहां से उन्हें पैदल ही निकलना था। घना जंगल, तंग रास्ते, और हर तरफ अजीब सन्नाटा…
रात ढल रही थी, और तभी…
“टन्न्न… टन्न्न…” एक घंटा बजा।
“कहीं मंदिर है क्या?” मीरा ने पूछा।
रघु ने कहा, “यहाँ तो कोई नहीं है… फिर ये आवाज़…?”
तभी अचानक दूर एक औरत की चीख गूंजी — तेज, कर्कश, दिल दहला देने वाली।
आदित्य ने टॉर्च जलाई, लेकिन उसका प्रकाश जैसे किसी अदृश्य पर्दे से टकरा गया हो — आगे कुछ भी दिखाई नहीं दिया।
और फिर… झाड़ियों के पीछे से एक बच्चा निकला, जिसके आँखें पूरी काली थीं।
“तुम… आ गए?”
और अगले ही पल… वह गायब हो गया।
आदित्य के रोंगटे खड़े हो गए।
“ये जगह… सही नहीं है।”
लेकिन पीछे मुड़ने का वक्त नहीं था।
भैरवपुर अब करीब था…
(जारी है…)