🎭 भाग 5: भूतों की सीढ़ियाँ
तीनों जैसे-जैसे अंधेरे में नीचे उतरते गए, हवा और ठंडी होती गई। टॉर्च की रौशनी भी अब जैसे काँपने लगी थी। सीढ़ियाँ पत्थर की थीं, लेकिन हर कदम पर लगता मानो कोई अदृश्य चीज़ उनका पीछा कर रही हो।
“ये सीढ़ियाँ… बहुत गहरी हैं…” मीरा ने डरते हुए कहा।
“और दीवारों पर ये निशान देखो…” आदित्य ने टॉर्च उठाई — हर दीवार पर खून से बने छोटे हाथों के निशान थे। जैसे बच्चों ने डर के मारे अपनी आखिरी कोशिश में उसे पकड़ा हो।
तभी अचानक पीछे से एक ठंडी सांस सी आवाज़ आई — “वापस जाओ…”
रघु ने डर कर पीछे देखा — वहां कुछ नहीं था, लेकिन उसकी गर्दन के पास कोई साँस ले रहा था।
“कोई है यहाँ… मैं महसूस कर सकता हूँ!” रघु काँपते हुए बोला।
नीचे एक छोटा कक्ष आया — गोलाकार, पूरी तरह अंधेरे में डूबा हुआ। उसकी बीचोंबीच एक काले पत्थर का कुंड था — और उसमें भरा था लाल तरल… खून।
कुंड के चारों ओर छोटे-छोटे ताखों में दीये जल रहे थे — पर बिना तेल, बिना बाती के।
आदित्य धीरे से कुंड के पास गया, तभी उसकी डायरी की जेब से वो पुराना नक्शा अपने आप बाहर निकल आया… और कुंड के ऊपर हवा में तैरने लगा।
“ये क्या हो रहा है?” मीरा ने घबराकर पूछा।
नक्शा धीरे-धीरे जलने लगा… और जलते-जलते उसमें से एक नाम उभरा —
“रक्तबिंदु द्वार”
“ये क्या है?” रघु ने पूछा।
“शायद कोई तांत्रिक द्वार… जिसे सिर्फ खून से खोला जा सकता है…” आदित्य ने कहा।
तभी कुंड से तेज़ लहर निकली और पूरे कमरे में लाल धुंध छा गई।
और उसी धुंध में… एक आकृति उभरी — लंबा, बिना चेहरा, पर आँखें जलती हुई…
वो आकृति धीरे-धीरे उनकी ओर बढ़ने लगी…
(जारी है…)