छाया घाट की रहस्यमयी रात – भाग 2
रात के लगभग 1 बजे थे। चारों दोस्त अब पूरी तरह से डर के साए में आ चुके थे। आदित्य का डुप्लीकेट देखना और वो भी नदी में डूबता हुआ — यह कोई सामान्य बात नहीं थी। नेहा अब कांप रही थी, और सिद्धार्थ को लगने लगा कि यह कोई भूतिया खेल है।
“हमें यहाँ से निकलना चाहिए,” श्वेता बोली।
लेकिन छाया घाट ने मानो उन्हें बाँध लिया था। जहाँ भी जाते, वहीं लौट आते। घड़ी की सूई चल रही थी, लेकिन उनका समय जैसे ठहर गया था।
अचानक पास के पेड़ के पीछे से एक अजीब-सी सरसराहट सुनाई दी। सबकी नजरें उस दिशा में घूम गईं।
पेड़ की जड़ के पास एक औरत बैठी थी — बिखरे बाल, सफेद साड़ी, चेहरा नहीं दिख रहा था। वो कुछ बड़बड़ा रही थी…
“अब कोई नहीं बचेगा… घाट की छाया सबको निगल जाएगी…”
सिद्धार्थ ने टॉर्च उस औरत की ओर की। लेकिन जैसे ही रोशनी उस पर पड़ी — वो गायब हो गई।
अब दोस्तों को यकीन हो गया कि ये जगह कोई आम जगह नहीं है। श्वेता ने तुरंत अपने फोन से लोकेशन चेक की — गूगल मैप्स भी सिर्फ छाया घाट ही दिखा रहा था, जैसे दुनिया में और कुछ था ही नहीं।
इतने में नेहा को कुछ अजीब महसूस हुआ। उसने कहा, “मुझे लग रहा है कोई मेरे अंदर उतरने की कोशिश कर रहा है।”
उसकी आंखें धीरे-धीरे पलटने लगीं, और वह ज़ोर-ज़ोर से संस्कृत में कुछ बड़बड़ाने लगी — एकदम अलग आवाज़, जैसे वो नेहा ही ना हो।
“शिव तांडवम रुद्राय नमः… मृत्यु अब पास है…”
आदित्य और सिद्धार्थ ने मिलकर नेहा को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन उसकी ताकत चार लोगों जितनी हो गई थी।
श्वेता ने डरते हुए अपनी रुद्राक्ष की माला निकाली और नेहा के माथे पर रख दी।
नेहा एक झटके से ज़मीन पर गिर गई… बेहोश।
चारों दोस्त अब समझ चुके थे — ये घाट श्रापित है। यहाँ कुछ था, जो उन्हें देख रहा था, खेल रहा था… और शायद, उन्हें यहाँ से जाने नहीं देना चाहता था।