छाया घाट की रहस्यमयी रात – भाग 5
श्वेता अब हवा में उठी हुई थी, उसकी आँखें खुली थीं लेकिन उनमें ज़िंदगी नहीं दिख रही थी। नेहा के शरीर में जो आत्मा थी, वो अब ज़ोर से चिल्लाई —
“एक नहीं… दो आत्माएं चाहिए इस बार… सौ साल की भूख है मेरी!”
सिद्धार्थ और आदित्य ने ताबीज़ को और कसकर पकड़ा। सिद्धार्थ चिल्लाया,
“हमें मंत्र पढ़ना होगा! साधु ने कुछ कहा था… याद है?”
आदित्य ने आँखें बंद कीं और याद करने लगा —
“ॐ क्षिप्रं भैरवाय नमः…”
तुरंत ही घाट की हवा गरम होने लगी। नेहा और श्वेता दोनों ज़मीन पर गिर पड़ीं, लेकिन एक तेज़ चीख घाट की गहराइयों से उठी —
“नहीं!!! ये मंत्र मुझे बाँध देगा!”
एक साया — काले धुएँ सा — घाट के पानी से निकलकर ऊपर आया। उसका चेहरा स्पष्ट नहीं था, लेकिन उसकी आँखें जलती अंगारों की तरह चमक रही थीं।
चारों दोस्त डर से कांप रहे थे, लेकिन सिद्धार्थ ने मंत्र दोहराना शुरू कर दिया।
“ॐ क्षिप्रं भैरवाय नमः…”
“ॐ क्षिप्रं भैरवाय नमः…”
साया धीरे-धीरे पीछे हटने लगा… लेकिन तभी वो नेहा के शरीर की ओर दौड़ा —
“अगर मेरी मुक्ति नहीं… तो तुम्हारी भी नहीं!”
श्वेता, जो अब होश में आ रही थी, चिल्लाई —
“नेहा को बचाओ! जल्दी कुछ करो!”
आदित्य ने घाट के किनारे पड़ा वो पुराना पीतल का घंटा उठाया और ज़ोर से बजाया।
टन्न्न्न!!!
घंटी की आवाज़ से पूरा घाट गूंज उठा। वो साया एक दर्दनाक चीख के साथ हवा में पिघलने लगा।
नेहा बेहोश हो गई।
चारों दोस्त ज़मीन पर गिर पड़े — थके, डरे हुए… लेकिन ज़िंदा।
सूरज की पहली किरण घाट पर पड़ी… और सब कुछ शांत हो गया।
लेकिन जब वे घाट से बाहर निकले, आदित्य ने धीरे से कहा —
“क्या ये सचमुच ख़त्म हुआ…?”
और तभी, पीछे से किसी औरत की धीमी फुसफुसाती आवाज़ आई —
“अब भी एक बाकी है…”