Haunted Malcha Mahal | क्या आपने कभी दिल्ली के छिपे हुए रहस्यों के बारे में सुना है? उन जगहों के बारे में, जहाँ इतिहास की धूल के नीचे कुछ ऐसी कहानियाँ दफ़न हैं, जो आज भी साँस लेती हैं? मैं भूतों पर विश्वास नहीं करता था, कम से कम तब तक नहीं जब तक मैंने खुद अपनी आँखों से वो सब नहीं देखा, दिल्ली के उस वीरान और शापित ‘मालचा महल’ में। मेरी ये कहानी सिर्फ एक डरावनी कल्पना नहीं है, बल्कि मेरे जीवन का वो काला अध्याय है जिसने मुझे अंदर तक झकझोर दिया। ये कहानी है एक ऐसे घर की जहाँ सिर्फ दीवारें नहीं थीं, बल्कि सदियों का दर्द, एक शाही परिवार का अभिशाप और एक आत्मा का इंतज़ार भी था।
दिल्ली का बुलावा और एक अजीबोगरीब सौदा
मेरा नाम अर्जुन है, और मैं हमेशा से इतिहास और पुरानी इमारतों में रुचि रखता था। मेरे पिताजी एक इतिहासकार थे, और उनका बार-बार तबादला होता रहता था। इसी वजह से हमारा बचपन कई शहरों और कई ऐतिहासिक जगहों के पास बीता। हर नए शहर के साथ एक नई कहानी होती थी, लेकिन कुछ कहानियाँ इतनी डरावनी होती हैं कि वे आपकी रूह कंपा देती हैं।
ये बात साल 2015 की है, जब मेरे पिताजी का तबादला दिल्ली हुआ। दिल्ली, जो अपने इतिहास और स्मारकों के लिए जानी जाती है, मेरे लिए एक रोमांचक जगह थी। पिताजी एक शोध परियोजना पर काम कर रहे थे जिसके लिए उन्हें दिल्ली के पुराने और ऐतिहासिक स्थानों के पास रहना था। शहर के केंद्र से थोड़ी दूर, रिज क्षेत्र के घने जंगल में, हमें एक अजीबोगरीब हवेली किराए पर मिली। यह हवेली, जिसे स्थानीय लोग ‘मालचा महल’ कहते थे, लगभग 700 साल पुरानी थी, जो तुगलक काल की बताई जाती थी। इसकी ऊँची दीवारें, टूटे हुए मेहराब और चारों ओर फैली वीरानगी किसी हॉरर फ़िल्म के सेट जैसी लगती थी।
हवेली के मालिक ने हमें बताया कि यह जगह कई सालों से खाली पड़ी थी, और इसमें कोई रहता नहीं था। उन्होंने हमें यह भी बताया कि यह कभी अवध के शाही परिवार की बेगम विलायत महल और उनके बच्चों का घर हुआ करती थी, जिन्होंने यहाँ दशकों तक एकांत में जीवन बिताया और अंततः यहीं उनकी मृत्यु हो गई। मालिक ने हमें चेतावनी दी कि यह जगह थोड़ी ‘अलग’ है, लेकिन पिताजी, जो इतिहास के प्रति जुनूनी थे, ने इसे एक बेहतरीन अवसर माना। माँ थोड़ी झिझक रही थीं, उन्हें इस जगह की वीरानगी और अजीब सी शांति पसंद नहीं आ रही थी, लेकिन पिताजी के उत्साह के आगे उनकी एक न चली।
हमने हवेली में कदम रखा। अंदर घुसते ही एक अजीब सी ठंडक महसूस हुई, जबकि बाहर दिल्ली की चिलचिलाती गर्मी थी। हवेली में पुरानी मिट्टी और सड़ी हुई लकड़ी की गंध थी और हवा में एक अजीब सा ठहराव था, जैसे समय यहाँ रुक गया हो। पहले कुछ दिन सब सामान्य रहा। हम सामान जमा रहे थे, कमरों को साफ़ कर रहे थे, लेकिन हर कोने में एक अजीब सी खामोशी थी जो चीखती हुई महसूस होती थी।
खामोश फुसफुसाहट और अदृश्य परछाइयाँ
धीरे-धीरे, मालचा महल में अजीबोगरीब चीज़ें होने लगीं। शुरुआत में, ये इतनी मामूली थीं कि हम उन्हें नज़रअंदाज़ कर देते थे या कोई तर्क दे देते थे। रात में, जब सब सो जाते थे, तो मुझे अक्सर गलियारे से फुसफुसाहट की आवाज़ें सुनाई देती थीं। ऐसा लगता था जैसे कोई धीमी आवाज़ में बात कर रहा हो, लेकिन जब मैं ध्यान से सुनता तो आवाज़ें बंद हो जातीं। कभी-कभी, रसोई से बर्तनों के खड़कने की आवाज़ आती, जैसे कोई कुछ बना रहा हो, लेकिन जब मैं वहाँ जाता तो सब शांत होता।
एक रात, मैं अपनी किताब पढ़ रहा था। रात के लगभग 2 बजे होंगे। अचानक, मेरे कमरे का दरवाज़ा धीरे से खुला और बंद हो गया। मैंने सोचा हवा का झोंका होगा, लेकिन खिड़की तो बंद थी। मैंने उठकर दरवाज़ा बंद किया और वापस बिस्तर पर आ गया। कुछ ही देर में, दरवाज़ा फिर से खुला और बंद हुआ। इस बार, मैंने दरवाज़े की तरफ देखा और मुझे लगा कि किसी की परछाई तेज़ी से गुज़री है। मेरे रोंगटे खड़े हो गए। मैंने हिम्मत करके दरवाज़े की तरफ देखा, लेकिन वहाँ कुछ नहीं था। मैंने खुद को समझाया कि यह सिर्फ मेरी कल्पना है।
अगले दिन, मैंने माँ को बताया। माँ ने कहा, “बेटा, ये पुरानी हवेली है, हवा चलती होगी, या चूहे होंगे।” पिताजी ने भी इसे ज़्यादा गंभीरता से नहीं लिया। लेकिन मेरे मन में एक अजीब सी बेचैनी घर कर गई थी। मुझे याद था कि मालिक ने हमें बताया था कि बेगम विलायत महल ने यहाँ आत्महत्या की थी, और उनके बच्चे भी यहीं मरे थे। क्या उनकी आत्माएं अभी भी भटक रही थीं?
अदृश्य हाथों का खेल और बढ़ती दहशत
कुछ दिनों बाद, चीज़ें और ज़्यादा स्पष्ट होने लगीं। एक दोपहर, मैं अपनी मेज़ पर बैठा होमवर्क कर रहा था। मेरी पेंसिल मेज़ के किनारे पर रखी थी। अचानक, पेंसिल अपने आप मेज़ से गिर गई। मैंने उसे उठाया और वापस रख दिया। कुछ ही सेकंड में, पेंसिल फिर से गिरी। इस बार, मैंने देखा कि जैसे किसी अदृश्य हाथ ने उसे धक्का दिया हो। मैं डर गया।
रात में, सबसे ज़्यादा अजीब चीज़ें होती थीं। कभी-कभी, जब हम रात का खाना खा रहे होते थे, तो डाइनिंग रूम में रखी पुरानी घड़ी की पेंडुलम अपने आप तेज़ी से हिलने लगती थी, जबकि उसे हिलना नहीं चाहिए था। एक बार, मैंने अपनी घड़ी को ठीक करने की कोशिश की, लेकिन वह एकदम सही थी।
एक और घटना जिसने मुझे अंदर तक हिला दिया, वो तब हुई जब मैं अपने कमरे में सो रहा था। आधी रात को, मुझे लगा कि कोई मेरे पैर खींच रहा है। मैं हड़बड़ा कर उठा और देखा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। मेरे पैर अभी भी ठंडे और सुन्न थे, जैसे किसी ने उन्हें कसकर पकड़ा हो। मैंने डर के मारे पूरी रात लाइट जलाकर रखी। मुझे लगा जैसे कोई मेरे बिस्तर के पास खड़ा मुझे घूर रहा हो।
माँ ने भी अब इन चीज़ों पर ध्यान देना शुरू कर दिया था। उन्हें अक्सर लगता था कि कोई उनके पीछे चल रहा है, या कोई उन्हें बुला रहा है, जबकि घर में हम तीन ही होते थे। उन्होंने बताया कि उन्हें कई बार एक पुरानी, फीकी परफ्यूम की गंध आती है, जो कुछ ही देर में गायब हो जाती है। पिताजी अभी भी इन बातों को मज़ाक में उड़ा देते थे, लेकिन उनके चेहरे पर भी अब चिंता की लकीरें दिखने लगी थीं। एक दिन, पिताजी की किताब उनके हाथ से गिर गई, जबकि उन्होंने उसे कसकर पकड़ा हुआ था। उन्होंने कहा, “लगता है यहाँ कुछ तो है।”
खौफनाक आहट और एक डरावना सच
मालचा महल में रहते हुए हमें लगभग चार महीने हो गए थे। अब रातें और ज़्यादा डरावनी होने लगी थीं। रात 3 बजे के आसपास, मुझे अक्सर गलियारे में किसी के चलने की भारी आवाज़ सुनाई देती थी। यह आवाज़ किसी बूढ़े व्यक्ति के लड़खड़ाते कदमों जैसी नहीं थी, बल्कि किसी भारी चीज़ को घसीटने जैसी थी, जो धीरे-धीरे मेरे कमरे की तरफ बढ़ रही थी। मैं अपनी आँखें बंद करके पड़ा रहता था, प्रार्थना करता था कि ये सब बंद हो जाए।
एक रात, आवाज़ें और ज़्यादा तेज़ हो गईं। ऐसा लगा जैसे कोई मेरे दरवाज़े के ठीक बाहर खड़ा हो। मैंने अपनी साँसें रोक लीं। तभी, दरवाज़े पर एक धीमी, लेकिन स्पष्ट खटखटाहट हुई। एक, दो, तीन बार। मेरा दिल तेज़ी से धड़कने लगा। मैंने हिम्मत करके पूछा, “कौन है?” कोई जवाब नहीं आया। फिर से खटखटाहट हुई। इस बार, आवाज़ थोड़ी तेज़ थी। मैंने डर के मारे अपनी आँखें बंद कर लीं।
अगले दिन सुबह, मैंने पिताजी को सब बताया। इस बार, पिताजी भी थोड़े परेशान दिखे। उन्होंने कहा, “ठीक है, बेटा, आज रात हम सब एक साथ सोएंगे।” उस रात, हम तीनों एक कमरे में सोए। रात 3 बजे के आसपास, वही कदमों की आवाज़ें सुनाई दीं। हम तीनों ने एक-दूसरे की तरफ देखा। आवाज़ें दरवाज़े के पास आकर रुक गईं। फिर, वही खटखटाहट हुई। एक, दो, तीन बार। इस बार, खटखटाहट इतनी ज़ोरदार थी कि दरवाज़ा हिल गया। माँ ने डर के मारे मेरी बाँह कसकर पकड़ ली। पिताजी ने हिम्मत करके पूछा, “कौन है वहाँ?” कोई जवाब नहीं आया, लेकिन दरवाज़े के हैंडल पर एक अजीब सी खड़खड़ाहट हुई, जैसे कोई उसे खोलने की कोशिश कर रहा हो। तभी, हमें एक ठंडी हवा का झोंका महसूस हुआ, और कमरे का तापमान अचानक गिर गया। हमें लगा जैसे कोई अदृश्य शक्ति हमारे बीच से गुज़री हो।
हमने पूरी रात जागकर बिताई। सुबह होते ही, पिताजी ने मालचा महल के इतिहास पर और शोध करना शुरू किया। उन्होंने कई पुरानी किताबें और रिकॉर्ड खंगाले। जो जानकारी मिली, वह हमारे रोंगटे खड़े करने वाली थी। बेगम विलायत महल ने अपने कुत्तों के साथ महल में खुद को बंद कर लिया था, और जब सरकार ने उनकी मांगों को पूरा नहीं किया, तो उन्होंने अपने सोने के पाउडर का सेवन करके आत्महत्या कर ली थी। उनके बच्चों ने भी बाद में आत्महत्या कर ली थी। स्थानीय लोग बताते थे कि उनकी आत्माएं आज भी महल में भटकती हैं, खासकर बेगम की आत्मा, जो अपने खोए हुए सम्मान और अकेलेपन के कारण अशांत है।
अंतिम सामना और एक भयानक अंत | Haunted Malcha Mahal
यह सुनकर हम सब सन्न रह गए। अब हमें समझ आया कि ये सब क्या हो रहा था। वो फुसफुसाहट, वो कदमों की आवाज़, वो अदृश्य हाथ, वो पैरों का खींचना – ये सब बेगम विलायत महल और उनके परिवार की अशांत आत्माएं कर रही थीं।
हमने तुरंत मालचा महल खाली करने का फैसला किया। सामान पैक करते समय, एक और अजीब घटना हुई। मैं अपने कमरे में था और अचानक मुझे लगा कि कोई मेरे कंधे पर हाथ रख रहा है। मैंने पीछे मुड़कर देखा, तो वहाँ कोई नहीं था। लेकिन मेरे कंधे पर एक अजीब सी ठंडक और दबाव महसूस हुआ। तभी, मुझे एक धीमी, उदास आवाज़ सुनाई दी, जैसे कोई फुसफुसा रहा हो, “मेरा महल… मुझे अकेला मत छोड़ो…”
मेरे शरीर में सिहरन दौड़ गई। मैं चीखता हुआ कमरे से बाहर भागा। पिताजी और माँ ने मुझे संभाला। हमने बिना देर किए मालचा महल छोड़ दिया। हमने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
आज भी, जब मैं उस मालचा महल के बारे में सोचता हूँ, तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। मुझे नहीं पता कि बेगम विलायत महल और उनके परिवार की आत्माओं को शांति मिली या नहीं। लेकिन मुझे इतना ज़रूर पता है कि कुछ जगहें सिर्फ ईंट और पत्थरों से नहीं बनी होतीं, बल्कि उनमें कुछ ऐसी कहानियाँ भी दफ़न होती हैं जो कभी ख़त्म नहीं होतीं। मैंने उस दिन से भूतों पर विश्वास करना शुरू कर दिया। और मैं आज भी कभी-कभी रात के 3 बजे, अपने दरवाज़े पर होने वाली उस खटखटाहट को महसूस करता हूँ, जैसे वो अशांत आत्मा आज भी मुझे बुला रही हो।
क्या आप कभी ऐसी किसी जगह पर रहे हैं जहाँ आपको कुछ अजीब सा महसूस हुआ हो? शायद आपके शहर के किसी पुराने कोने में भी कोई अनकही कहानी छिपी हो।