अंतिम सत्य: आत्माओं का मिलन और क्रोध का परिणाम
अंकित उठा, उसकी आत्मा में अथाह पीड़ा थी। उसने उन अंकल से बोला कि उसे अपने घर जाना है… “कैसे जाऊँ??” अंकल ने बोला “हाँ ज़रूर पर तुम्हें ये दूरी खुद ही तय करनी होगी।” इतना बोलकर अंकल की आत्मा एक धुएँ के गुबार की तरह हवा में घुल गई, अंकित को अकेला छोड़कर।
अब अंकित वहाँ अकेला था, सर्द हवा में, बर्फ़बारी के बीच। वह वापस मुड़ गया अपने घर के रास्ते पर… एक अनिश्चित यात्रा पर, एक ऐसी यात्रा पर जिसकी कोई वापसी नहीं थी।
पता नहीं कैसे वह अपने घर पहुँचा। उसे पहुँचते हुए सुबह हो गई… सूरज की पहली किरणें अभी फूट ही रही थीं, पर उन किरणों में भी एक अजीब सी उदासी थी।
अंकित के घर में दो दरवाज़े थे। अंकित पीछे के रास्ते से घर में आता है, एक आत्मा की तरह बिना किसी आहट के।
घर में आते ही वह देखता है कि उसका बेटा देव एक कोने में बैठकर बिलख-बिलख कर रो रहा था, और अपने पापा यानी अंकित को याद कर रहा था… “पापा… पापा…” देव की ऐसी हालत देख कर अंकित की आत्मा चीत्कार उठी। वह रोते हुए वहीं बैठ गया… उसकी आत्मा तड़प रही थी अपने बेटे को छूने के लिए, पर वह जानता था कि वह अब सिर्फ़ एक परछाई है। वह रोते हुए उठा और अपने देव को गले लगाने जाता है… और उसे पकड़ कर खूब चूमता है, प्यार करता है। देव भी अंकित को पाकर उससे लिपट कर रोने लगता है, उसकी छोटी सी देह उसकी आत्मा से लिपट जाती है। यह सब चल ही रहा था कि तभी अंकित को आगे के कमरे में कुछ हलचल महसूस होती है… वह देव को अपनी गोद में लेकर घर के आगे के हिस्से में जाता है तो उसे जो दिखता है वह देख कर उसके होश उड़ जाते हैं, उसकी आत्मा काँप उठती है।
वह देखता है कि उसकी पत्नी साक्षी को पुलिस गिरफ़्तार कर रही होती है। और अंकित की मृत देह वहीं फ़र्श पर पड़ी हुई होती है, उसका चेहरा शांति से जमा हुआ था, पर शरीर पर चोट के निशान साफ़ दिख रहे थे, ठीक वैसे ही, जैसे सीढ़ियों से गिरने पर लगी थीं। उसे समझ नहीं आता कि पुलिस साक्षी को गिरफ़्तार क्यों कर रही है… तभी उसकी नज़र एक ऐसे दृश्य पर पड़ती है जिसे देखकर उसके पैरों तले ज़मीन खिसक जाती है, उसकी आत्मा काँप उठती है…
वह देखता है कि सामने खिड़की पर उसका बेटा देव खड़ा है। उसके छोटे-छोटे हाथ खिड़की से बंधे हैं, और उसका शरीर बेजान सा लटक रहा था। और पुलिस उसकी मृत देह को वहाँ से उतार रही थी। देव का चेहरा नीला पड़ चुका था, उसकी आँखें खुली थीं, उनमें एक अजीब सी उदासी और इंतज़ार जमा हुआ था।
यह देखते ही अंकित की आँखें फटी की फटी रह जाती हैं… उसके भीतर का सारा दर्द आँसू बनकर एक धार में निकल आता है…
जी हाँ… उसका बेटा देव भी मर चुका था। अपने पापा की याद में… उनका इंतज़ार करते हुए। ठंड और अकेलेपन ने उसे मौत की नींद सुला दिया था।
अंकित को अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह क्या हुआ, कैसे हुआ। उसका संसार पल भर में उजड़ गया था।
फिर पुलिस साक्षी से पूछती है कि कैसे उसका बेटा मरा।
तो वह बिलखते हुए, बिखरे बालों के साथ, काँपते होंठों से बताती है… कि कैसे उसकी और अंकित की लड़ाई हुई.. और वह शाम को अंकित का इंतज़ार कर रही थी। पर काफ़ी देर हो गई, अंकित नहीं आया… साक्षी ने अंकित का फ़ोन भी ट्राई किया पर उसने नहीं उठाया… यह सब से साक्षी का गुस्सा दसवें आसमान पर था। “ऊपर से देव ‘पापा, पापा’ की रट लगाए हुआ था। इसी पर मैंने देव की पिटाई कर दी और बोला ‘आप अपने बाप से ही खाना खाना, वही खिलाएगा, पता नहीं कहाँ गया है मुँह मारने, उसे तो आज़ादी ही चाहिए मुझसे, कहीं बैठकर ऐय्याशी कर रहा होगा तेरा बाप।’ देव मेरे गुस्से से डर गया और वहीं उस खिड़की के पास जाकर खड़ा हो गया जहाँ वह रोज़ शाम में खड़ा होकर अपने पापा का इंतज़ार किया करता था… मैंने कई बार देव को बोला कि नीचे उतरे और खाना खाए… पर वह ज़िद कर रहा था और नहीं आ रहा था… तो मैंने गुस्से में उसके हाथ वहीं खिड़की पर बाँध दिए कि ‘अभी जब उसका पापा आएगा तो खोल ही देगा…'” साक्षी की आवाज़ धीमी पड़ गई, आँसुओं में डूब गई। “मैं फिर अपने फ़ोन में व्यस्त हो गई… और फ़ोन देखते-देखते कब सो गई मालूम ही नहीं चला। सुबह जब उठी तो मुझे याद आया कि देव खिड़की पर था, मैं जल्दी से गई उसके पास पर वह.. वह…..” यह बोलते हुए साक्षी फूट-फूट कर रोने लगी, उसकी हिचकियाँ बँध गईं।
यह सब अंकित भी सुन रहा था… उसकी आत्मा पर एक और वज्रपात हुआ। वह वहीं बैठ सा गया… अपने बच्चे देव को गोद में लेकर… और सोचने लगा कि काश वह कल रात घर आ जाता, काश उसने उस बस से छलांग न लगाई होती, काश वह थोड़ा और धैर्य रख पाता… और फूट-फूट कर रोने लगा… एक आत्मा की ऐसी चीख जो कोई सुन नहीं सकता था, सिवाय उन दीवारों के जो इस त्रासदी की मूक गवाह थीं।