एक भयावह सत्य या एक बुरा सपना?
अंकित अचानक से उठा और फूट-फूट कर रोने लगा… उसकी साँसें तेज़ थीं, शरीर पसीने से भीगा हुआ था। तभी साक्षी भी उठती है जो बगल में सो रही थी और अंकित से पूछने लगी “क्या हुआ?” अंकित बस रोए जा रहा था… रोते हुए ही वह अपनी बीवी और बच्चे को देखता है। वे सब सही-सलामत थे… साक्षी सहमी हुई थी, देव गहरी नींद में सो रहा था। तभी साक्षी फिर पूछती है “क्या हुआ? कोई सपना देखा क्या???”
अंकित ने देव को अपनी बाहों में भर लिया, उसके छोटे से शरीर की गर्माहट महसूस की। उसने साक्षी को देखा, फिर अपने देव को। उसकी आँखों में अभी भी उस भयानक सपने का डर था, वह उस हकीकत और सपने के बीच का फ़र्क नहीं कर पा रहा था। क्या यह सिर्फ़ एक डरावना सपना था, या क्रोध का यह अंधापन वाकई उसके जीवन में ऐसी ही तबाही ला सकता है? क्या वह आत्मा से मिलने का अनुभव, बस एक चेतावनी थी, एक भयानक भविष्य का संकेत?