जयपुर के पास एक तांत्रिक था — गुरु काशीदेव, जिसने ज़िंदगी में कई आत्माएं बांधी थीं। उसकी आंखों ने भूतों को थरथराते देखा था, और उसकी जुबान पर वेदों की आग थी। जब उसे ज़हीरा की खबर मिली — एक ऐसी आत्मा जो अब शरीरों से होकर शहरों में उतर रही थी — उसने उसे रोकने की सौगंध खाई।
“ये कोई आम भूत नहीं,” उसने कहा। “ये काम-शक्ति से उपजी शापित देवी है। इसे केवल तंत्र से नहीं — यज्ञ और बलिदान से ही बाँधा जा सकता है।”
वो मोरवाड़ा पहुंचा।
राती हवेली अब वीरान नहीं रही — उसकी दीवारें गीली थीं, ज़मीन से धुआँ उठ रहा था, और हवा में स्त्रियों की धीमी सी हँसी। कमरे नंबर 6 का दरवाज़ा हिल रहा था — जैसे भीतर कोई खिलखिला रहा हो, किसी नए मेहमान के इंतज़ार में।
काशीदेव ने हवेली में प्रवेश किया।
कमरे में अंधेरा नहीं था — वहाँ लाल रौशनी थी, और फर्श पर तेल से बने कामसूत्र के प्रतीक। और उसके बीचोंबीच बैठा था आरव — अब पूरा पुरुष नहीं, ज़हीरा का संवाहक, उसकी आत्मा में समाया हुआ देवता।
उसके चारों ओर बैठे थे पुरुष और स्त्रियाँ — नग्न, आँखें बंद, साँसें भारी।
“हम अब भूखे नहीं रहते… ज़हीरा हमें तृप्त करती है…”
काशीदेव ने हवन कुंड जलाया। उसके मंत्र तेज़ हुए।
लेकिन तभी कमरे में ज़हीरा उतरी।
वो अब इंसान नहीं लगती थी — उसकी देह धुएँ से बनी थी, उसके स्तन चाँद की तरह चमकते थे, और उसकी जाँघों के बीच तांत्रिक चिन्ह उभर आए थे।
“तू मुझे बाँधने आया है?” उसकी आवाज़ गूँजी, “या मेरी पूजा करने?”
उसने अपनी उंगलियाँ अपने सीने पर फिराईं, और काशीदेव की आँखों में एक ज्वाला सी भर दी।
“तू तांत्रिक है… तुझमें अग्नि है… वही अग्नि जो मुझे चाहिए।”
वो उसकी ओर बढ़ी। काशीदेव मंत्र पढ़ता रहा… लेकिन उसकी आवाज़ धीमी पड़ गई।
ज़हीरा ने उसके वस्त्र खुद ही उतार दिए। उसके हाथ हवा में उठे, लेकिन शरीर… संपूर्ण समर्पण में गिर गया।
उसने तांत्रिक को बिस्तर पर लेटा दिया, और खुद उस पर चढ़ गई — बाईं जाँघ उसकी छाती पर, दाहिनी आँखों पर।
“तू मुझे बाँधने नहीं आया था… तू खुद बाँधने के लिए तैयार था,” उसने कहा।
और जैसे ही उनका मिलन हुआ — कमरे की सारी मोमबत्तियाँ खुद-ब-खुद बुझ गईं।
हवेली ने एक और पुजारी पा लिया।
अब ज़हीरा अकेली नहीं रही।
उसने अपना एक संप्रदाय बना लिया है — वासना का पंथ, जहाँ हर स्त्री और पुरुष उसका पुजारी है, और हर मिलन एक यज्ञ।
हर पूर्णिमा की रात, मोरवाड़ा के आसमान में एक लाल धुंआ उठता है। दूर से दिखती है एक परछाईं — लंबे बाल, नग्न देह, और आँखों में ऐसी आग जो देवताओं को भी झुका दे।
“मैं ज़हीरा हूँ…
काम की देवी…
और हर रात्रि मेरा मंदिर है…”….Aage ki kahani Page 5 Par