भाग 2: घर वापसी और एक अजनबी की आत्मा
कुछ देर बाद रिजवान एक मैकेनिक के साथ वापस लौटा। उसकी घबराहट तब और बढ़ गई जब उसने देखा कि कार खाली है और जारा कहीं नजर नहीं आ रही। उसने चारों तरफ नजर दौड़ाई और तभी उसकी नजर कब्रिस्तान के खुले गेट पर पड़ी।
“यार, यह गेट तो सालों से बंद था, यह कैसे खुल गया?” रिजवान ने मैकेनिक से कहा और फिर जोर से चिल्लाया, “जारा! जारा!”
अंदर से कोई जवाब नहीं आया। डरते-डरते रिजवान ने अंदर कदम रखा। टॉर्च की रोशनी में उसे जारा कुछ दूरी पर खड़ी दिखाई दी। वह बिल्कुल स्थिर खड़ी थी, जैसे कोई मूर्ति हो।
“जारा! यहाँ कब्रिस्तान में क्या कर रही हो? मैंने कहा था ना कार में ही रुकने के लिए!” रिजवान ने गुस्से में कहा।
जारा ने धीरे-धीरे अपना सिर घुमाया। उसकी आँखें खाली थीं और चेहरे पर कोई भाव नहीं था। उसने कोई जवाब नहीं दिया।
“ठीक है, चलो यहाँ से। कार ठीक हो गई है,” रिजवान ने उसका हाथ पकड़कर उसे बाहर खींचा। जारा बिना किसी प्रतिरोध के उसके साथ चल पड़ी, मानो उसकी अपनी कोई इच्छा ही न हो।
घर पहुँचने पर रहीम चाचा का गुस्सा सातवें आसमान पर था। “जारा! यह कोई वक्त है घर लौटने का? क्या हो गया है तुम्हें?”
जारा चुपचाप खड़ी रही, उनकी तरफ देखती रही। उसकी इस बेरुखी से रहीम चाचा का गुस्सा और भड़क गया।
“जारा, जवाब दो! यह क्या बर्ताव है?” रहीम चाचा ने उसके कंधे पकड़कर हिलाया।
तभी जारा के मुँह से एक गहरी, भारी और बिल्कुल अलग आवाज़ निकली, “मुझे क्यों परेशान कर रहे हो? मैं छोटी बच्ची नहीं हूँ। मुझे पता है मुझे क्या करना है और क्या नहीं।”
यह सुनकर रहीम चाचा और अम्मी दोनों सन्न रह गए। यह आवाज़ जारा की नहीं थी। यह किसी और की थी।
“जारा, यह क्या बर्ताव है तुम्हारा?” रहीम चाचा ने फिर चिल्लाया।
जारा ने मुड़कर उन्हें घूरते हुए कहा, “अपनी बकवास बंद करो, बुड्ढे! मुझे अकेला छोड़ दो।”
इतना कहकर उसने अपने कमरे का दरवाजा जोर से बंद कर दिया। रहीम चाचा और अम्मी हैरान-परेशान एक-दूसरे का मुँह देखते रह गए। उनकी आज्ञाकारी बेटी अचानक इतनी बदल गई थी?
कुछ घंटों बाद अचानक जारा के कमरे से दर्द भरी चीखें सुनाई देने लगीं। ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसे यातना दे रहा हो। रहीम चाचा और अम्मी दौड़े-दौड़े उसके कमरे के बाहर पहुंचे। दरवाजा पीटते रहे, लेकिन वह ताला लगा था और हिल तक नहीं रहा था।
अम्मी ने खिड़की की झिरी से अंदर झांका और जो देखा, उससे उनकी रूह काँप गई। जारा हवा में तैर रही थी! उसके कपड़े फटे हुए थे और उसके शरीर पर नीले-नीले निशान थे। ऐसा लग रहा था मानो कोई अदृश्य शक्ति उसे जोर-जोर से पीट रही हो और उसके साथ बलात्कार करने की कोशिश कर रही हो। जारा बस चीख़ रही थी, “छोड़ो मुझे! please! नहीं!”
रहीम चाचा ने पूरी ताकत से दरवाजे पर प्रहार किया, लेकिन वह ऐसा लग रहा था मानो लोहे का बना हो। वे बेबस होकर सिर्फ अपनी बेटी की चीखें सुनते रहे। अचानक चीखें रुक गईं और पूरे घर में सन्नाटा छा गया। दरवाजा अपने आप खुल गया।
अंदर का नज़ारा दिल दहला देने वाला था। जारा बेहोश, कोने में पड़ी थी। उसके कपड़े चीथे हुए थे और उसके शरीर से खून बह रहा था। रहीम चाचा ने तुरंत उसे कंबल से ढका और अस्पताल ले गए।
डॉक्टरों ने जांच की तो पता चला कि उसके साथ जघन्य अत्याचार हुआ है। पुलिस को बुलाया गया। रहीम चाचा और अम्मी ने पूरी घटना सुनाई, लेकिन इंस्पेक्टर के चेहरे पर साफ अविश्वास था।
“मतलब, आप कहना चाह रहे हैं कि किसी अदृश्य शक्ति ने उसके साथ यह सब किया? यह बचकानी और बेतुकी बात मैंने कभी नहीं सुनी। सच-सच बताइए, क्या आप दोनों कुछ छुपा रहे हैं?”
…क्या पुलिस रहीम चाचा और अम्मी को ही guilty ठहराएगी? क्या कोई उनकी बात पर विश्वास करेगा?