🧘♂️ कामिनी और वासना का श्राप
अमित दौड़कर मूर्ति के पास गया। तभी मूर्ति से एक प्रकाश फूटा। एक ऋषि की आत्मा प्रकट हुई।
“बेटा, ये सब मेरे पापों का फल है…”
“सदियों पहले इस जगह पर कामिनी नाम की एक वेश्या रहती थी। उसे कामदेव से वरदान मिला था — हर रात के बाद वो फिर से कुंवारी हो जाती थी।”
“लेकिन वरदान के साथ श्राप भी जुड़ा था,” आत्मा ने कहा।
“हर सहवास के बाद वो एक बीज उत्पन्न करती थी… जो जवान, उत्तेजक और अमर होता था। वो बीज मेरे अंदर भी था… और मैं भी उसके मोह में बंध गया।”
“ये सब लड़कियाँ… मेरी ही संताने हैं। कामिनी की भी, और मेरी भी।”
“वो आज भी इसी पेड़ में बंधी है। उसे मुक्त करो। मुझे भी मुक्त करो।”
🔥 अंतिम प्रायश्चित: वासना के वृक्ष को जलाना
अमित ने साहस जुटाया, कार से पेट्रोल निकाला और पीपल के पेड़ पर आग लगा दी।
लाखों आत्माओं की चीखें आसमान में गूंज उठीं। फिर अचानक एक सुनहरी रोशनी निकली — कामिनी की आत्मा, जिसने हाथ जोड़कर धन्यवाद कहा।