दोस्तों, आज जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ, वो मुझे मेरे एक सब्सक्राइबर ने भेजी है। नाम तो मैं नहीं बताऊँगा, पर जो उन्होंने बताया, उसे सुनकर मेरी रीढ़ तक सिहर गई थी… और शायद आपकी भी सिहर उठे। ये एक पुरानी हवेली की कहानी है… एक ऐसा कमरा, जो सिर्फ रात को खुलता है… और एक ऐसा अनुभव, जो नशे की तरह शरीर और आत्मा को जकड़ लेता है।”
Puri story ab Audiobook me Sune
हवेली की दहलीज़ – Horror story in hindi
मैं अनिका हूँ। उम्र 28 साल। पेशे से लेखिका और शौक से खोजी। मुझे पुरानी जगहों, वीरान मकानों और दबी कहानियों में गहरी दिलचस्पी है।
मुझे एक बार राजस्थान के एक सूनसान गांव में एक पुरानी हवेली के बारे में पता चला — “रावल हवेली”, जो पिछले 100 सालों से बंद पड़ी थी। गांववालों के मुताबिक, उस हवेली का एक कमरा ऐसा है जहाँ कोई भी रात बिताए, वो बदल जाता है। या तो पागल हो जाता है, या फिर कभी नहीं लौटता।
मेरे लिए ये डराने वाली बात नहीं थी। ये मेरे लिए था एक निमंत्रण।
मैंने वहाँ जाने का फैसला किया — अकेले।
जब मैं हवेली पहुँची, तो दिन के चार बजे थे। हवेली का पहला नज़ारा ही कुछ ऐसा था कि रूह काँप जाए — टूटी दीवारें, झूलती खिड़कियाँ, और दीवारों पर अजीब निशान।
मेरा स्वागत विवेक नाम के एक आदमी ने किया — हवेली का देखभाल करने वाला। करीब 32 साल का, लंबा, साँवला, और गहरी आँखों वाला आदमी। उसकी आँखों में एक अजीब सा सन्नाटा था, जैसे बहुत कुछ जानता हो… और कुछ छुपा भी रहा हो।
“आप ही हैं अनिका जी?” उसने पूछा, उसकी आवाज़ हल्के कंपन के साथ आई।
“हाँ,” मैंने मुस्कराते हुए कहा। “आप ही देखभाल करते हैं यहाँ की?”
विवेक ने सिर हिलाया, फिर मेरी आँखों में झाँकते हुए बोला,
“जो आप ढूंढने आई हैं… वो शायद आपको मिल जाए। लेकिन… एक चेतावनी है — तीसरे कमरे में मत जाना।”
मैंने उसकी बात को अनसुना किया, पर मेरे मन में उस कमरे के लिए अब और जिज्ञासा थी।
रात को, मैंने हवेली के अंदर घूमते हुए उस “तीसरे कमरे” को ढूंढा। वो एक लंबे गलियारे के अंत में था — लोहे की जंजीरों से बंद, और ऊपर एक पट्टिका लटकी थी —
“राजमहल — केवल रानी के लिए”
मैंने विवेक से पूछने की कोशिश की, लेकिन उसने कुछ कहे बिना वहाँ से चला गया।
मैंने जंजीरें हटाईं। दरवाज़ा खुद-ब-खुद चर्र-चर्र करता खुला।
कमरे में घुसते ही एक ठंडी हवा का झोंका मेरे गालों से टकराया। भीतर एक भारी महक थी — किसी पुरानी इत्र जैसी, लेकिन कुछ अलग… कुछ ऐसा जो देह को जगा दे।
कमरे में एक विशाल पलंग था — रेशमी गाढ़े लाल चादरों से ढँका हुआ। दीवारों पर नग्न रानियों की तसवीरें, और ऊपर एक छत की नक्काशी जिसमें रानी और राजा की एक विचित्र मूर्ति बनी थी — रानी को किसी अंधेरे साये ने जकड़ रखा था।
मैं उस बिस्तर पर बैठी… और अनजाने में लेट गई।
रात के करीब 2 बजे, मैं नींद में थी कि किसी के स्पर्श ने मुझे जगा दिया।

गर्म साँसें… गले पर, छाती पर।
मैंने आँखे खोली, लेकिन कोई नहीं था।
फिर मैंने महसूस किया — कोई मुझे छू रहा है… बेहद गहराई से, बेहद महीन तरीके से।
मेरा शरीर बगैर मेरी इच्छा के प्रतिक्रिया कर रहा था। बिस्तर की चादरें अपने आप मेरे शरीर से फिसलने लगीं।
कोई अदृश्य था… और वो जानता था कि कहाँ छूना है, कैसे छूना है।
मेरी साँसे तेज़ होती गईं, होंठ खुद-ब-खुद खुल गए। मेरी जाँघों के बीच एक गर्म एहसास फैलता गया।
फिर, मेरे होठों पर एक किस। ठंडा… लेकिन गहराई से जगा देने वाला।
मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं — और खुद को उस अनुभव में डूबने दिया।
सुबह मेरी नींद टूटी तो मैं नग्न थी, बिस्तर पर चादरें बिखरी हुई थीं। मुझे सब कुछ याद था… और एक अजीब तृप्ति थी शरीर में।
विवेक मुझे देखने आया।
“आप ठीक हैं?” उसने पूछा, लेकिन उसकी आँखों में डर था।
मैंने मुस्कराकर कहा, “हाँ। लेकिन उस कमरे में… कोई था। कोई जो…”
“मैं जानता हूँ।” विवेक ने धीरे से कहा। “उस कमरे में रानी सरस्वती की आत्मा है। 100 साल पहले, राजा ने उसे हवस में मार डाला था। उसके बाद से वो यहाँ कैद है… और अब हर औरत को अपने जैसा बनाती है… और हर पुरुष से अपना बदला लेती है।”
मैंने उसकी आँखों में देखा।
“लेकिन… वो बदला नहीं ले रही थी। उसने मुझे कुछ और दिया था… ऐसा कुछ जो आज तक किसी इंसान ने नहीं दिया।”
विवेक ने कुछ नहीं कहा, बस सिर झुका लिया।
अगली रात, मैंने खुद को पूरी तरह तैयार किया। मैंने वही लाल रेशमी साड़ी पहनी जो उस तसवीर में रानी ने पहनी थी। खुद को इत्र से सजाया… और उसी कमरे में फिर से लेट गई।
उस रात… वो लौटी।
लेकिन इस बार, वो दिखी।
एक नीली रोशनी में, एक औरत की छवि बनी — लहराते बाल, भरे हुए स्तन, और आँखें जो किसी तंत्रमंत्र जैसी गहराई लिए हुए थीं।
वो मेरे करीब आई। उसके होंठ मेरे होंठों से टकराए। मैंने उसकी उंगलियाँ अपने भीतर महसूस कीं। उसकी देह, मेरी देह में समा रही थी।
मैं अब सिर्फ मैं नहीं रही। मैं ‘हम’ बन चुकी थी।
उस रात, मैंने विवेक को बुलाया।
“आओ… आज तुम मेरे राजा हो,” मैंने कहा। पर वो मैं नहीं थी, वो रानी थी।
विवेक मेरे पास आया, जैसे सम्मोहित हो।
हमने वो रात साथ बिताई — या यूँ कहूँ, उसने वो रात मेरी आत्मा और रानी की आत्मा के बीच बिताई।
सुबह, विवेक की लाश मेरे पास पड़ी थी — आँखें खुली हुईं, और चेहरे पर एक मुस्कान।
अंत… या नई शुरुआत
मैं अब इस गाँव में नहीं हूँ। मैं एक नया केंद्र चलाती हूँ — “Sensual Awakening Retreats”।
लोग दूर-दूर से आते हैं।
मैं उन्हें “देह और आत्मा के मिलन” का अनुभव कराती हूँ।
पर हर किसी को वो अनुभव नहीं होता।
कभी-कभी, जब रात गहराती है, और कोई पुरुष मेरी आँखों में झाँकता है — रानी फिर लौट आती है।