तांत्रिक का सच: एक अधूरी आत्मा का श्राप

आदित्य की हालत ख़राब हो चुकी थी। उसके शरीर में एक अजीब सी कंपकंपी दौड़ गई थी। उसने अपनी आँखें कसकर बंद कर लीं, और राम-राम जपने लगा, जैसे यही उसे बचा सकता हो। जब उसने हिम्मत करके अपनी आँखें खोलीं, तो वो औरत वहाँ नहीं थी। पर उसके कंधे पर अब भी वही ठंडे स्पर्श का एहसास था, जो उसे सता रहा था। उस दिन आदित्य को तेज़ बुख़ार हो गया, और वो कई दिनों तक बिस्तर से नहीं उठ पाया। जब रोहन और समीर वापस आए, तो आदित्य ने उन्हें अपनी आँखों देखी पूरी घटना बताई। इस बार किसी ने मज़ाक नहीं उड़ाया। तीनों ने मिलकर एक तांत्रिक को बुलाने का फ़ैसला किया। उन्हें लग रहा था कि अब ये सिर्फ़ कोई साधारण भूत नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली और क्रोधित आत्मा है।
अगली सुबह, वो एक पुराने मंदिर के पास रहने वाले एक जाने-माने तांत्रिक बाबा के पास गए। बाबा ने उनकी बात ध्यान से सुनी, उनके डर को समझा, और फिर एक गहरी साँस लेकर बोले, “बेटा, तुमने एक ऐसे मकान में क़दम रखा है जहाँ एक अधूरी आत्मा का वास है। ये आत्मा जिसे तुम देखते हो, उसका नाम गायत्री था। वो इसी मकान में रहती थी, एक साधारण औरत थी। उसको उसके अपने ही पति ने बेइंतहा धोखा दिया था, उसकी ज़िंदगी तबाह कर दी थी। और इस दर्द को सहन न कर पाने के कारण, उसने इसी घर में अपनी जान ले ली थी, ख़ुदकशी कर ली थी। उसकी आत्मा तब से यहाँ भटक रही है, उसे शांति नहीं मिली है। वो इंसाफ़ चाहती है, अपने धोखेबाज़ पति से बदला चाहती है।”
बाबा ने उन्हें कुछ उपाय बताए। उसने कहा कि वो आत्मा सिर्फ़ शांति और इंसाफ़ चाहती है, और अगर उन लड़कों ने उसकी मदद की तो वो उन्हें नुक़सान नहीं पहुँचाएगी। उन्होंने गायत्री की पूरी कहानी सुनी, उसके दर्द को समझा, और उसके लिए बाबा से एक विशेष शांति पाठ करवाया। बाबा ने उन्हें एक प्राचीन मंत्र लिखकर दिया और कहा कि इसे घर के हर कोने में, हर कमरे के दरवाज़े पर लगा दो। साथ ही, रोज़ रात को एक मिट्टी का दिया जलाया करो और उसमें गायत्री के लिए कुछ फूल और मिठाई रखा करो।
लड़कों ने बिल्कुल वैसा ही किया। उन्होंने गायत्री के लिए घर में एक छोटी सी, साफ़-सुथरी जगह बनाई, जहाँ वो हर शाम उसके लिए ताज़े फूल रखते और दिया जलाते थे। उन्हें उम्मीद थी कि इससे उस भटकती आत्मा को शांति मिलेगी। धीरे-धीरे, उन्हें वो अजीबोगरीब आवाज़ें आनी बंद हो गईं। वो ठंडा एहसास भी ग़ायब हो गया। उन्हें लगा कि गायत्री की आत्मा को अब शांति मिल गई है और वे अब सुरक्षित हैं। पर ये सिर्फ़ उनकी ग़लतफ़हमी थी। ये सन्नाटा तूफ़ान से पहले की शांति थी।
बदला लेने वाली रूह: जब शांति टूट गई
एक महीने बाद, सब कुछ बिल्कुल सामान्य हो चुका था। आदित्य और उसके दोस्त अब उस घर में बिना किसी डर के आराम से रह रहे थे। उन्हें लगा था कि वो डर का अध्याय बंद हो चुका है। एक रात, तीनों दोस्त अपने-अपने बिस्तर पर बैठे थे, अगले दिन के एग्ज़ाम की तैयारी कर रहे थे। आधी रात का समय था, बाहर सन्नाटा पसरा था। तभी रोहन को अचानक बहुत तेज़ प्यास लगी। वो उठा और पानी पीने के लिए किचन की तरफ़ गया। जब वो पानी पी रहा था, तो उसे लगा कि किचन का दरवाज़ा जो उसने आते वक्त बंद किया था, हल्का सा खुला हुआ है। उसने सोचा शायद हवा से खुला होगा। उसने मुड़ कर देखा। और जो उसने देखा, उसने रोहन की रूह तक को हिला दिया। उसकी आत्मा ने शरीर छोड़ना चाहा।
किचन के दरवाज़े पर, अँधेरे में, वही औरत खड़ी थी। पर इस बार वो पहले से कहीं ज़्यादा डरावनी, ज़्यादा भयानक लग रही थी। उसकी आँखें लाल अंगारों सी जल रही थीं, जैसे उनमें ख़ून भरा हो। उसके चेहरे पर अब वो ख़ाली, उदास मुस्कुराहट नहीं थी, बल्कि एक विकराल, गुस्से वाली भयानक मुस्कान थी जो उसके होंठों को चीर रही थी। उसके लंबे, काले बाल बेतरतीब तरीक़े से हवा में लहरा रहे थे, जैसे उसके अंदर कोई अदृश्य, भयानक तूफ़ान हो। और उसकी साँसें इतनी तेज़ थीं कि रोहन को अपने दिल की धड़कन, एक ड्रम की तरह अपने कान में गूँजती हुई साफ़ सुनाई दे रही थी।
“तुमने सोचा कि मुझे शांति मिल गई?” उस औरत की आवाज़ इस बार फुसफुसाहट नहीं थी, बल्कि एक तेज़, भयानक चीख़ थी, जो पूरे घर में गूँज उठी। उसकी आवाज़ में एक ऐसी आग थी, जो रोहन के अंदर तक महसूस हुई। “मुझे शांति तब तक नहीं मिलेगी जब तक उसने सज़ा नहीं पाई… जब तक मेरे पति को उसके पापों की, उसके कर्मों की सज़ा नहीं मिलती, मैं भटकती रहूँगी! मैं उसे छोड़ूँगी नहीं! मैं उसे ढूँढ निकालूँगी…!”
और उसके बाद, उस औरत ने रोहन पर हमला कर दिया। आदित्य और समीर रोहन की चीख़ सुनकर, बिना एक पल भी सोचे, तेज़ी से किचन की तरफ़ भागे। जब वो किचन में पहुँचे, तो रोहन ज़मीन पर बेसुध पड़ा हुआ था, उसके गले पर गहरे, नीले निशान थे, जैसे किसी अदृश्य ताक़त ने उसे ज़ोर से गला दबाया हो। और उस औरत की काली परछाई तेज़ी से किचन की खुली खिड़की से बाहर निकल गई, हवा में जैसे घुल गई।
रोहन को तुरंत अस्पताल ले जाया गया। वो सौभाग्य से बच गया, पर उसके अंदर का वो भयानक डर कभी नहीं गया। उस घटना ने उसे अंदर से तोड़ दिया था। उसने उस मकान को तुरंत, बिना एक पल भी सोचे, छोड़ दिया। आदित्य और समीर ने भी अगली सुबह ही वो मकान ख़ाली कर दिया। उन्होंने कभी उस मकान की तरफ़ मुड़ कर नहीं देखा, न ही कभी उसके बारे में बात की।
आज भी, आदित्य को वो रातें याद हैं। वो कहता है कि उसने उस दिन के बाद कभी भी किसी पुराने या वीरान मकान में रहने की हिम्मत नहीं की। वो अब भी कभी-कभी रात में अचानक उठ जाता है, और उसे लगता है कि वही ठंडा, बर्फ़ीला स्पर्श उसके कंधे पर है। उस औरत की भयानक चीख़ और उसकी बदला लेने वाली आवाज़ आज भी उसके कानों में गूँजती है।
“मुझे शांति तब तक नहीं मिलेगी जब तक उसने सज़ा नहीं पाई…”
और हमें नहीं पता कि उस गायत्री की आत्मा को कभी शांति मिलेगी या नहीं। शायद वो आज भी उस घर में भटक रही होगी, अपने इंसाफ़ का इंतज़ार कर रही होगी। या शायद, वो अपने बदले की तलाश में अब भी कहीं बाहर भटक रही है… कौन जाने?
कैसी लगी दोस्तों ये रूह कंपा देने वाली हॉरर स्टोरी इन हिंदी (Horror Story in Hindi)? सच कहूँ, मुझे तो लिखते हुए भी डर लग रहा था। क्या आपकी ज़िंदगी में भी कोई ऐसी डरावनी, सच्ची घटना हुई है? या आपने कोई ऐसी कहानी सुनी है जो आपके रोंगटे खड़े कर दे? कमेंट सेक्शन में ज़रूर बताना। मुझे इंतज़ार रहेगा!