पार्ट 8: आखिरी ट्रेन का टिकट
रात फिर से गहराने लगी थी। हवा में ठंडक थी, और स्टेशन पर सन्नाटा पसरा हुआ था।
स्टेशन मास्टर – अब रवि जान चुका था कि वो रमेश है – ने धीमे स्वर में कहा,
“आज रात वो फिर आएगी… आखिरी बार। तुम्हें उसे समझाना होगा। अगर वो मानेगी, तो उसकी आत्मा मुक्त हो जाएगी। अगर नहीं…”
रवि डर गया, पर उसके दिल में अब सहानुभूति थी।
घड़ी ने ठीक 12:15 बजाया।
जैसे ही घंटी बजी, वही पुरानी ट्रेन की सीटी सुनाई दी – वो ट्रेन जो सालों से बंद थी। धुंध के बीच से वो धड़धड़ाते हुए आती दिखाई दी, जैसे समय की सीमाओं को चीर रही हो।
शालिनी उस ट्रेन से उतरी।
उसके चेहरे पर वही मासूमियत, पर आँखों में खालीपन था।
“रवि…” उसने कहा। “तुम आ गए… चलो… हमारा सफ़र शुरू करें।”
रवि ने काँपते हुए कदम बढ़ाए।
“शालिनी… मैं तुमसे कुछ कहने आया हूँ। मैं जानता हूँ तुम सालों से इंतज़ार कर रही हो। लेकिन अब समय है कि तुम आगे बढ़ो। रमेश… वो यहीं है। तुम्हारा इंतज़ार करता हुआ।”
शालिनी की आँखों में आंसू आ गए।
“रमेश?” उसने धीरे से कहा।
स्टेशन मास्टर सामने आया, पहली बार उसकी आँखों में राहत और प्यार दोनों थे।
“शालिनी… अब हम जा सकते हैं। लेकिन इस बार हमेशा के लिए…”
शालिनी मुस्कराई, और उसकी आत्मा धीरे-धीरे हवा में घुलने लगी… जैसे कोई परछाईं सूरज की रौशनी में गायब हो जाए।
रवि स्तब्ध खड़ा था।
स्टेशन पर एक अजीब शांति थी… जैसे कोई अधूरी कहानी पूरी हो गई हो।
लेकिन जैसे ही रवि मुड़ा… कुछ अजीब हुआ।
उसने देखा — स्टेशन पर कोई नहीं था।
ना ट्रेन, ना रमेश, ना शालिनी।
और… उसकी जेब में एक टिकट था।
टिकट पर लिखा था: “One Way – For Those Who Belong Here…”