🩸 भाग 3: पीछे की दीवार पर खून
सुबह का उजाला होने में अभी तीन घंटे बाकी थे। सभी की नींद उड़ चुकी थी। नानी बार-बार मंत्र पढ़ रही थीं, और माँ कमरे के कोनों में कपूर और लौंग जलाकर धुआँ फैला रही थीं।
नाना, जो हमेशा तर्क और विज्ञान की बातें करते थे, इस बार चुप थे।
वो दीवार जहाँ खून के छींटों जैसे निशान दिखे थे — अब उसमें से गीली मिट्टी झड़ने लगी थी, जैसे किसी ने अंदर से उसे खोदने की कोशिश की हो।
“ये क्या हो रहा है?” माँ ने काँपते हुए कहा।
नानी धीरे से बोलीं, “इस दीवार के पीछे पहले कुछ और था। ये बाद में बनाई गई थी… तुम्हारे दादा की मौत के कुछ महीने बाद।”
माँ चौंक गईं, “पर आपने कभी बताया नहीं…?”
नानी की आँखें भर आईं, “क्योंकि मुझे भी नहीं पता था कि क्या छुपाया गया था… बस इतना जानती हूँ कि तुम्हारे दादा बहुत परेशान रहने लगे थे उस समय… और एक दिन अचानक लापता हो गए।”
अचानक, क्रिस्टी के मामा ज़ोर से चिल्लाए, “वो दीवार में घुसी जा रही है… मैंने देखा! वो औरत! उसके हाथ मिट्टी में थे… और आँखें लाल…”
सभी भागकर उस दीवार के पास पहुँचे — और वही देखा जो मामा ने कहा था।
दीवार के बीचोंबीच की ईंटें गीली हो चुकी थीं, जैसे किसी ने अंदर से पानी डाला हो… और वहाँ दो लाल हथेलियों के निशान थे — जैसे कोई अंदर से बाहर आने की कोशिश कर रहा हो।
“अब और नहीं,” नाना ने कहा। “सुबह होते ही हम यहाँ से जा रहे हैं।”
पर वो नहीं जानते थे — सुबह तक वक्त बहुत लंबा है… और वो औरत अब सिर्फ दीवार में नहीं थी।
उसकी साँसें अब छत से सुनाई देने लगी थीं…