“भूतों से कम, इंसानों से ज़्यादा डरना चाहिए।” – Real Horror Story
तिहाड़ जेल… नाम तो सुना ही होगा। इंडिया की सबसे बड़ी और सबसे खतरनाक जेलों में से एक। यहां देश के सबसे बड़े-बड़े अपराधी बंद रहते हैं – अफज़ल गुरु, छोटा राजन, पी. चिदंबरम, संजय दत्त… लिस्ट लंबी है। लेकिन इस कहानी में डर इन नामों से नहीं लगता… डर लगता है उस कोने से जहां इंसान ही इंसान की रूह छीन लेता है।
ये कहानी है साल 1993 की… और ये कहानी मुझे एक दोस्त की तरह मेरे एक सब्सक्राइबर ने भेजी थी। पढ़ते-पढ़ते मेरी रातों की नींद उड़ गई। इतना डर लगा कि कुछ भी और सोच पाना मुश्किल था। इसलिए मैंने सोचा, ये कहानी तुम्हें जरूर सुनानी चाहिए।

शुरुआत – एक नए कैदी की एंट्री
उसका नाम था केतन। उस पर आरोप था कि उसने चार लोगों का बेरहमी से कत्ल किया है। जब उसे तिहाड़ लाया गया, तो उसकी आंखों में कोई पछतावा नहीं था। लेकिन जैसे ही वो जेल नंबर 4 में एंटर हुआ, उसकी चाल धीमी पड़ गई।
उसने पहली बार जेल की हवा सूंघी, चारों तरफ कैदी थे – हर चेहरा अलग, हर नजर में कुछ छुपा हुआ। फिर वो पहुंचा जेल की कैंटीन में, जहां कुछ पुराने कैदी उसे घूरने लगे।
एक आदमी था – केशव। वो हंसते हुए बोला, “क्या किया है तू?”
“चार लोगों का कत्ल। ऐसा पुलिस कहती है।” – केतन ने जवाब दिया।
उस पर सभी हंसे, पर फिर केशव धीरे से बोला,
“भाई यहां कोई भी तुझे जीने नहीं देगा। यहां कोई भी भरोसे लायक नहीं है। यहां हर कोई अकेले में रहना पसंद करता है। खुद पे रह, वरना तुझे मार डालेगा कोई।”
केतन ने बात तो मान ली, लेकिन असली डर उसे तब लगा जब उसने बताया कि उसे सेल नंबर 205 में रखा गया है। सब एकदम चुप हो गए।
पीछे से फिर वही आवाज आई – केशव की।
“सेल नंबर 205? बस अब तो तेरी फांसी तय है भाई।”