Real Horror story – तिहाड़ जेल की एक सच्ची डरावनी कहानी

क्या आप यकीन करेंगे अगर कोई कहे कि तिहाड़ जैसी हाई सिक्योरिटी जेल के अंदर एक ऐसी 'real horror story' हुई जिसे आज तक मीडिया ने नहीं छुआ? ये कोई फिल्मी कहानी नहीं है, बल्कि एक सच्चा किस्सा है – एक कैदी की पहली रात, एक रहस्यमयी साथी, और एक ऐसा डर जो इंसान की सोच को निगल जाए। जब सेल नंबर 205 का दरवाज़ा बंद हुआ, तो केतन को नहीं पता था कि वो जेल में नहीं, एक मनोवैज्ञानिक मौत की सजा में जा रहा है।इस डरावनी कहानी को पढ़िए और जानिए, तिहाड़ की उस दीवार के पीछे क्या होता है, जब भूत नहीं... इंसान ही सबसे बड़ा खतरा बन जाता है।
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सेल नंबर 205 – जहां मौत टंगी रहती है

शाम के करीब 5 बजे, केतन को उसके सेल तक ले जाया गया। जेल नंबर 4 वैसे भी एक डार्क, डरावनी जगह थी – एकदम पत्थर की दीवारें, कोई रोशनी नहीं। 1993 में तो और भी बुरा हाल था।

जैसे ही वो सेल में पहुंचा, उसने देखा – सामने एक पत्थर का बिस्तर और उस पर कोई बैठा था।

“नाम क्या है तेरा?” – अंधेरे में से आवाज आई।

“केतन। और आपका?”

जुनैद।

जुनैद ने धीमे-धीमे उसे बताया –

“आधी रात में आंखें मत खोलना। जो भी हो, किसी आवाज के पीछे मत जाना। कोई छुए, तो घबराना मत। जो हो रहा है, सह लेना। बस… आंखें मत खोलना।”

केतन थोड़ा घबरा गया, लेकिन कुछ समझ नहीं आया।

रात हुई। खाना खाया। दोनों अपने-अपने बिस्तर पर लेट गए।


पहली रात – कुछ तो गड़बड़ है

आधी रात केतन की नींद खुली। वो पानी पीने उठा। देखा – जुनैद अपने बिस्तर पर नहीं था। डर लगा। सलाखों की तरफ गया तो देखा – दरवाजा खुला था! जेल का दरवाजा!!

उसे सांस लेने में दिक्कत होने लगी। वो भागते हुए बाहर गया और हवलदार को बोला,

“कुछ है अंदर… कोई मुझे मारने वाला है।”

हवलदार ने जाकर देखा – दरवाजा तो लॉक था। और जुनैद वहीं सोया हुआ था।

फिर जुनैद उठ के बोला, “मैं कहां जाऊंगा यार? ताला तो बंद है।”

लेकिन केतन को कुछ समझ नहीं आ रहा था। वो बोला,

“तू वहां नहीं था। मैं सब देख रहा था। तू ग़ायब था। तूने बोला था आंखें मत खोलना, फिर भी मैंने खोली… शायद मुझसे गड़बड़ हो गई।”

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