धीरे-धीरे पागलपन
अगले दिन भी केतन थका हुआ लग रहा था। उसने केशव से बात की तो वो हंसने लगा –
“दिख गया ना भूत? बोला था तुझे, सेल नंबर 205 में कुछ गड़बड़ है।”
केतन वापस सेल में गया और सो गया।
लेकिन जब आंख खुली… तो रात हो चुकी थी!
“मैं तो बस चाय पीकर आया था… इतनी जल्दी रात कैसे हो गई?”
जुनैद बोला, “अभी खाना खा के 10 मिनट ही तो हुए हैं। पागल हो गया है क्या?”
फिर… आधी रात को केतन ने देखा – कोई खड़ा है जेल के बाहर। उसका चेहरा जला हुआ, चीख रहा है। उसे बुला रहा है।
वो डर के मारे कंबल में घुस गया। चिल्लाने लगा।
और यही सिलसिला रात भर चलता रहा।
कभी हंसना, कभी चिल्लाना, कभी पागलों जैसी बातें।
सुबह – एक लाश और एक करवट
अगली सुबह जब हवलदार आया, तो केतन की लाश पड़ी थी।
जुनैद करवट लेकर फिर से सो गया। जैसे उसे पहले से पता हो, कि यही होना है।
सच सामने आया
असल बात यह थी कि जुनैद कोई नया कैदी नहीं था।
वो सालों से जेल नंबर 4 में था। उस पर अपने ही परिवार की हत्या का आरोप था। और जुनैद को था एक खतरनाक मानसिक बीमारी – शिज़ोइड पर्सनालिटी डिसऑर्डर।
उसे अकेलापन पसंद था। इंसानों से नफरत थी। और वो बहुत चालाक था।
उसने केतन को डर के झांसे में लिया। उसे रात को खाना दिया, जिसमें उसने मिला दिया था एक खतरनाक ड्रग – DMT।
DMT एक ऐसा ड्रग है जो इंसान को भ्रम में डाल देता है। 30-40 मिनट के ट्रिप में ऐसा लगता है जैसे दिन बीत गए हों। डर, दर्द, भूतिया आवाजें… सब असली लगते हैं।
केतन उस डर में फंस गया।
धीरे-धीरे उसकी हालत बिगड़ती गई… और फिर उसने दम तोड़ दिया।
आखिरी बात – इंसानों से डरो, भूतों से नहीं
भूतों की कहानियां तो हर जगह हैं। लेकिन असली डर अगर है, तो वो इंसानों से है।
क्योंकि जेल में भूतों को नहीं, इंसानों को बंद किया जाता है।
और अगर इंसान ही रूह को मारने लगे… तो भूतों से क्या डरना?