भाग 2: साँसों की आहट – Real horror Story in Hindi
हम सब चुपचाप खड़े रहे। किसी की हिम्मत नहीं हुई कि एक कदम भी आगे बढ़ाए।
झोंपड़ी के पिछले हिस्से से आती वो खड़खड़ाहट अब ज़्यादा साफ़ हो रही थी — जैसे कोई चीज़ ज़मीन पर घिसट रही हो।
“शायद कोई जानवर हो,” आदित्य ने धीरे से कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में खुद यकीन नहीं था।
रोहित ने मोबाइल की टॉर्च उस दिशा में घुमाई।
कुछ नहीं दिखा — बस टूटी हुई चारपाई, बिखरे बर्तन और एक पुराना झूला, जो धीरे-धीरे हिल रहा था… जैसे किसी ने अभी-अभी उसे छोड़ा हो।
“ये… अभी हिलना शुरू हुआ है?” निधि की आवाज़ काँप रही थी।
तान्या ने आदित्य की बाजू कसकर पकड़ ली।
“अब बाहर चलते हैं,” मैंने धीरे से कहा। “ये जगह ठीक नहीं लग रही।”
हम पीछे मुड़ने ही वाले थे कि अचानक दरवाज़ा धीरे-धीरे खुद-ब-खुद बंद होने लगा।
चरररर…
वो आवाज़ अब बहुत करीब थी।
हम सबने एक साथ दरवाज़े की तरफ दौड़ लगाई। आदित्य ने हाथ से दरवाज़ा रोका और बाहर की ओर धक्का दिया।
दरवाज़ा एक झटके से खुला और हम चारों बाहर निकलकर साँस लेने लगे।
पर बाहर भी अब पहले जैसा सन्नाटा नहीं था।
हवा कुछ तेज़ हो गई थी… और गाँव के हर कोने से बिलकुल एक जैसी आवाज़ें आ रही थीं — जैसे कोई धीरे-धीरे फुसफुसा रहा हो।
“तुम लोगों ने सुना?” रोहित ने पूछा।
सबने सर हिलाया।
फिर तान्या ने एक ओर इशारा किया — गाँव के एक कोने में एक बूढ़ी औरत खड़ी थी, सफेद साड़ी में। बहुत दूर, लेकिन साफ़ दिख रही थी।
वो हमें घूर रही थी — बिना पलक झपकाए।
हम सब ठिठक गए।
“क्या हम… उनसे पूछें कि यहाँ कोई रहता है या नहीं?” निधि ने डरते हुए कहा।
मैंने हामी भरी और हम धीरे-धीरे उस ओर बढ़े।
लेकिन जैसे ही हम कुछ क़दम आगे बढ़े — वो बूढ़ी औरत गायब हो चुकी थी।
जैसे कभी थी ही नहीं।
गाँव फिर से वैसा ही हो गया — शांत, ठंडा, और रहस्यमय।
“अब तो चलो यहाँ से,” तान्या लगभग रो पड़ी थी।
हमने गाड़ी की ओर लौटना शुरू किया — लेकिन जब हम पीपल के पेड़ के पास पहुँचे…
गाड़ी वहाँ नहीं थी।