भाग 5: गाँव का सच – Horror Stories
“वापस जाओ…” — वो दो शब्द जैसे कमरे की हवा को और ठंडा कर गए।
हम सब एक-दूसरे की तरफ देखने लगे। डर अब चुप्पी में बदल गया था।
“किसने भेजा ये काग़ज़?” रोहित फुसफुसाया।
मैंने दरवाज़े के नीचे झाँककर देखा… बाहर कोई नहीं था। न कोई आवाज़, न कोई साया। बस पीपल के पत्ते हिल रहे थे — जैसे वो सबकुछ देख और सुन रहे हों।
निधि ने कहा, “हमें यहाँ से निकल जाना चाहिए। अभी के अभी।”
लेकिन तभी तान्या बोली, “पर क्या तुम लोगों ने गौर किया… झोंपड़ी के अंदर धूल में कुछ उभरा हुआ है?”
हमने टॉर्च की रोशनी नीचे फेंकी। फर्श पर उंगलियों से खींचे गए कुछ निशान थे — जैसे किसी ने ज़मीन पर कुछ लिखने की कोशिश की हो।
“मत भूलो… वही जगह है…”
“ये किस जगह की बात कर रहा है?” आदित्य घबरा गया।
“हो सकता है, ये गाँव…” मैंने धीरे से कहा।
तान्या ने कुछ याद करने की कोशिश की। “मुझे लगता है, मैंने इस गाँव का नाम पहले कहीं सुना है… शायद किसी लोककथा में…”
हमने तुरंत मोबाइल से नेटवर्क पकड़ने की कोशिश की, लेकिन कोई सिग्नल नहीं था।
“हम सुबह तक रुकते हैं,” मैंने कहा, “तब तक शायद कुछ समझ में आए।”
रात गहराने लगी। हवा में अजीब सी गंध थी — गीली मिट्टी में मिली हुई अगरबत्ती जैसी… पर कहीं कोई पूजा नहीं हो रही थी।
हम सब झोंपड़ी में ही सोने की कोशिश करने लगे। नींद तो किसी को नहीं आई, लेकिन आँखें थककर बंद होने लगीं।
और फिर… ठीक आधी रात को…
झोंपड़ी के बाहर किसी औरत के गाने की आवाज़ आई।
धीमी… पुरानी लोकधुन में गुनगुनाहट। जैसे कोई lullaby हो — पर उसमें कुछ अजीब था… जैसे हर सुर में कोई चेतावनी छुपी हो।
“कौन गा रहा है इस वीरान जंगल में?” निधि काँप गई।
मैंने खिड़की से बाहर झाँका…
और वहाँ, दूर पीपल के नीचे… एक औरत बैठी थी। लाल साड़ी में… बाल खुले… और चेहरा? चेहरा साफ़ नहीं दिख रहा था…