भाग 9: शापित इतिहास
तान्या अब भी बेहोश थी। हमने उसे जैसे-तैसे हवेली के अंदर लाकर एक पुराने पलंग पर लिटाया। उसकी साँसें तेज़ थीं, और होंठ अब भी बड़बड़ा रहे थे — “वो लौट आई है… वो आग में जलती रही…”
मैंने आदित्य और निधि की तरफ़ देखा। सबके चेहरे ज़र्द पड़े थे।
“हमें कुछ करना होगा,” आदित्य बोला, “ये कोई आम आत्मा नहीं है… ये किसी पुरानी नफ़रत का नतीजा है।”
“डायरी… वो पुरानी डायरी शायद कुछ बता सके,” मैंने कहा।
हमने मिलकर ड्रॉअर में छुपी उस डायरी को फिर से निकाला। इस बार हमने उसे ध्यान से पढ़ना शुरू किया।
“17 अक्टूबर, 1912
आज फिर पंचायत ने गलत फ़ैसला सुनाया… सती के नाम पर निर्दोष राधा को जला दिया गया…”
पन्नों पर आँसू के धब्बे जैसे लगे थे।
“उसने कहा था, अगर उसे ज़िंदा जलाया गया, तो वो लौटेगी… हर उस रूह को खींचने जो चुप रही…”
हम सब चुप थे। हवेली की हवा अब और भारी लगने लगी थी। तभी तान्या की चीख़ गूँजी — उसने आँखें खोल दी थीं।
“वो यहीं है… ऊपर नहीं, नीचे… तहख़ाने में…”
हम सबने एक-दूसरे की तरफ देखा। हवेली का तहख़ाना अब तक बंद पड़ा था।
“अगर हमें ज़िंदा रहना है, तो अब वहाँ जाना ही होगा…” मैंने कहा।