आत्मा का सामना
वह यह सब सोच ही रहा था कि तभी एक बस आकर रुकी। अंकित को कुछ समझ नहीं आया और वह उस बस में चढ़ गया और जाकर कोने में एक सीट पर खिड़की के पास बैठ गया। बस चल दी। बस लगभग ख़ाली ही थी, मुश्किल से 2-3 सवारियाँ होंगी ड्राइवर और कंडक्टर के अलावा। वह बस कोने में बैठ कर सोच रहा था और रो रहा था। अपनी यादों में खोए हुए वह काफ़ी दूर निकल गया, रात के करीब 10 बज चुके थे। उसने देखा कि बस एक जगह रुकी, कुछ और लोग सवार हुए। उसने नोटिस किया कि कंडक्टर ने उसकी टिकट नहीं बनाई और बस भी काफ़ी देर से चल रही है। फिर उसे लगा शायद ज़्यादा लोग नहीं हैं इसलिए शायद जब लोग भर जाएँ तब एक साथ बनाएगा। फिर उसने पास ही बैठी एक महिला को आवाज़ लगाई यह पूछने के लिए कि यह कौन सी जगह है, पर उस महिला ने अनसुना कर दिया। शायद वह ईयरफ़ोन में गाना सुन रही थी इसलिए अंकित ने उसे डिस्टर्ब नहीं किया। उसे वह एरिया किसी गाँव का लग रहा था, और मौसम ठंड का था तो बर्फ़ भी पड़ने लगी थी।
उसे कुछ ठीक नहीं लगा, उसका अपने बच्चे के पास जाने का मन होने लगा। उसने बस रोकने के लिए आवाज़ लगाई पर ड्राइवर और कंडक्टर ने अनसुना कर दिया, जैसे उसे सुन ही नहीं रहे थे। उसने कई बार बोला पर उसे लगा शायद बस वाला उसे अनसुना कर रहा। उसे लगा ये लोग शायद सही नहीं हैं, वह बस के पिछले गेट के पास आकर खड़ा हो गया। वह बस से उतरना चाह रहा था। तभी बस एक जगह धीमी हुई, उसने तुरंत ही मौक़ा देख कर जंप कर दिया। जंप करते हुए वह थोड़ा लड़खड़ाया और लड़खड़ाते हुए वह बस स्टैंड पर लगी सीट के पास आ बैठा। उस सीट के पास एक बुज़ुर्ग आदमी बैठा हुआ था।
अंकित ने एक नज़र उस अंकल की तरफ़ देखा अंकल एकदम शांत, स्थिर। अंकित उठता है और अपने कपड़े झाड़ते हुए उन अंकल से पूछता है ” अंकल ये कौन सी जगह है?” वह बूढ़ा आदमी पहले तो इग्नोर करता है, पर 2-3 बार पूछने पर वह उस जगह का नाम बताता है, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी गूँज थी, मानो हवा में तैर रही हो।
अंकित को एहसास हुआ कि वह अपने घर से बहुत ही ज़्यादा दूर आ गया है। उसे एहसास हुआ कि काफ़ी देर भी हो गई है तो वह सोचता है कि कॉल करके बता दूँ घर पर। साक्षी कहीं परेशान न हो रही हो। पर जब वह जेब से फ़ोन निकालने के लिए जेब चेक करता है तो उसे अपना फ़ोन नहीं मिलता है। वह थोड़ी देर इधर-उधर ढूँढता है, जेब में। पर उसका फ़ोन उसके साथ नहीं था। वह दिमाग पर ज़ोर देता है कि कहाँ फ़ोन गिरा होगा।
तभी उसे याद आता है कि जहाँ वह सीढ़ियों से गिरा था शायद वहीं कहीं गिर गया होगा। वह खुद को बहुत कोसता है कि साक्षी सही कहती है, वह किसी काम का नहीं है। वह सोचने लगा कि अब क्या करे, वह इधर उधर देखने लगता है। उसने देखा कि वह ऐसी जगह है जहाँ उस बस स्टैंड के अलावा और कुछ नहीं है, पूरा हाईवे है और दोनों तरफ़ अँधेरा और वहाँ बस हाईवे पर ही लाइट थी शायद वह कोई गाँव था, और उस सुनसान रोड पर वह बस स्टैंड और वहाँ पर बैठे वो बूढ़े अंकल थे बस, जो कि एकदम शांत बैठे हुए थे और रोड को घुरे जा रहे थे मानो किसी का इंतज़ार कर रहे हो।
अंकित उन अंकल के पास आता है और पूछता कि “अंकल यहाँ से बस या कोई और साधन मिलेगा क्या मुझे वापस अपने घर जाना है?” वह अंकल उसे देखते हैं, ऐसा लग रहा मानो उसे पढ़ने की कोशिश कर रहे हों, उनकी नज़रें अंकित के आर-पार देख रही थीं। अंकित फिर पूछता है “अंकल, कोई बस मिलेगी यहाँ से अभी के वक़्त?
लगभग 12 बजने को थे।” अंकल बोलते हैं “सुबह ही मिल पाएगी इस वक़्त तो नहीं।” अंकित थोड़ा दुखी और टेंशन में आ जाता है, पर बोलता है “ये तो रोड है, कोई न कोई गाड़ी मिल जाएगी मैं लिफ़्ट ले लूँगा। मेरे बीवी बच्चे इंतज़ार कर रहे होंगे, परेशान हो रहे होंगे।”
अंकित वहाँ से रोड पर जाता है और इधर-उधर गाड़ी का देखने लगता है कि शायद कोई गाड़ी दिख जाए तो मैं लिफ़्ट ले लूँ… उसका घर लगभग 100-150 किमी दूर था वहाँ से। उसे गुस्सा आ रहा था खुद पर कि क्यों वह इतनी दूर चला आया। उसे अपने देव की याद आ रही थी, वह अक्सर शाम को अपने पापा का इंतज़ार करता है, उसके घर में एक खिड़की थी जिस पर अक्सर शाम को खड़ा हो कर अपने पापा का इंतज़ार किया करता है वह, और वहीं से जब अंकित गली में होता था तो पापा-पापा चिल्लाते हुए हाथ हिलाता था। अंकित को अपने बेटे की ये सब बातें याद आने लगी थी और वह रोने लगता है कि उसका बेटा परेशान हो रहा होगा और साक्षी जो कि पहले से गुस्से में थी वह और ज़्यादा गुस्से में हो गई होगी। वह सोचने लगा कि कहीं गुस्से में वह देव पर हाथ न छोड़ दे, क्योंकि अक्सर देव ज़िद करता है तो मार खा जाता है अपनी माँ से और अभी तो मैं घर पर हूँ भी नहीं… ये सब बातें अंकित को परेशान कर रही थी और वह बेसब्री से किसी गाड़ी की राह देखने लगा।
थोड़ी देर वह देखता है पर उसे कोई गाड़ी नहीं दिखती, रात के सन्नाटे के अलावा और कुछ नहीं दिख रहा था। जापान में ठंड की रात में गिरती हुई स्नो सर्द हवाएँ हड्डियों को जमा रही थीं, और बर्फ़ की फुहारें अब तेज़ होने लगी थीं। तभी वापस से उसका ध्यान उन अंकल पर आता है कि अंकल काफ़ी देर से यहाँ बैठे हैं, इतनी रात को क्या इनका घर पास में ही है, ये गए क्यों नहीं। ये सब सोचते हुए वह अंकल के पास आता है।
अंकित पास आकर उस बूढ़े अंकल के बगल में बैठ जाता है और पूछता है, “अंकल, इतनी रात को यहाँ आप क्या कर रहे हो? क्या आपका घर पास में है?”
अंकल ने कोई जवाब नहीं दिया। उनकी आँखें सड़क को घूर रही थीं, उनमें कोई भावना नहीं थी, बस एक खालीपन था। अंकित ने फिर से पूछा, “क्या कोई कार या कोई और वाहन मिल सकता है आपके गाँव से ?”
अंकल ने ‘ना’ में जवाब दिया। उनकी आँखों में एक अजीब सी ठंडक थी, जैसे वह किसी और दुनिया से देख रहे हों। एक गहरी साँस लेते हुए उन्होंने बोला, “बस अब सुबह ही मिलेगी, इस वक़्त तो नहीं।” उनकी आवाज़ हवा में घुल गई, मानो वह किसी छाया से बोल रहे हों।
अंकित ने पूछा, “पर आप इतनी रात को यहाँ क्या कर रहे? आपको घर नहीं जाना?”
अंकल ने जवाब दिया, “नहीं, मैं अकेला ही हूँ और घर पर। मेरा कोई इंतज़ार नहीं कर रहा… मैं इंतज़ार कर रहा अपने बेटे का। वह शहर कमाने गया है। बड़ा आदमी बनने, उसी का इंतज़ार करता हूँ रोज़ यहीं इस बस स्टैंड पर। पर वह आज तक नहीं आया।”
अंकित ने बोला: “रोज़? पर क्यों? आप उससे फ़ोन पर बात कर लो वह बता देगा कि कब आएगा। इस तरह आप इतनी रात को यहाँ इंतज़ार करेंगे इस ठंड में, आपकी तबीयत ख़राब हो जाएगी, और अब तो बर्फ़ भी गिर रही है, आपकी तबीयत ख़राब हो जाएगी, आपको घर जाना चाहिए अपने। “अंकित ने चिंता करते हुए कहा”
अंकल के होंठों पर एक फीकी सी, दर्द भरी मुस्कान आई। उन्होंने बोला: “घर पर जाकर क्या करूँगा, वहाँ कोई नहीं है? और अब बेटा नहीं आएगा मेरा।” अंकित सोच में पड़ जाता है, और बोलता है “अरे क्यों नहीं आएगा? मैं भी शहर में ही रहता हूँ, आप बताओ कहाँ रहता है वो, मैं बोलूँगा उसे आप से मिलने के लिए।” अंकल उसकी तरफ़ देखते हैं और एक ठंडी साँस लेते हुए बोलते हैं। “वह आया था लास्ट टाइम मेरी लास्ट रिचुअल पर, तभी देखा था उसे।”
अंकित जम सा जाता है… आत्मा बैठी थी। उसे गहरा सदमा लगा…!!! उसे समझ नहीं आता अंकल ने क्या बोला। उसका दिमाग़ यह बात प्रोसेस नहीं कर पा रहा था। वह हकलाते हुए दोहराता है… “क्या? लास्ट रिचुअल?? किसकी?”
अंकल ने अपनी ठंडी, स्थिर आँखों से उसकी तरफ़ देखा और बोले, “मेरी।”