भाग 3: अस्पताल में कहर और जिन्न की पहचान
अस्पताल में जारा की हालत स्थिर होती दिख रही थी, लेकिन अचानक वह फिर से बेकाबू हो गई। उसने खुद को नोचना शुरू कर दिया और एक डरावनी, गहरी आवाज में चिल्लाने लगी, “तुम लोग मुझे रोक नहीं सकते! वो सिर्फ मेरी है! सिर्फ मेरी!”
पुलिस और डॉक्टर मिलकर भी उसे काबू में नहीं कर पा रहे थे। उसमें एक अविश्वसनीय ताकत आ गई थी। इंस्पेक्टर की समझ में आ चुका था कि यह मामला सामान्य नहीं है। उसने रहीम चाचा को किसी मौलवी को बुलाने की इजाजत दे दी।
मौलवी साहब के आते ही माहौल बदल गया। उन्होंने कमरे में प्रवेश करते ही अपना तावीज निकाला और अरबी आयतें पढ़नी शुरू कर दीं। जारा की आँखें पलट गईं और उसके मुँह से एक डरावनी, गुर्राहट भरी आवाज निकली, “चले जाओ यहाँ से, मौलवी! तुम मुझे रोक नहीं सकते!”
एक भयानक संघर्ष शुरू हो गया। मौलवी साहब की आयतें और जारा (या उसके अंदर की शक्ति) की गुर्राहटें… आखिरकार मौलवी साहब ने उस जिन्न को जारा के शरीर से बाहर निकालने में सफलता पाई।
हवा में एक भयानक आकृति उभरी। वह पूरी तरह लाल था, जैसे उसकी त्वचा उधड़ गई हो। उसकी नसें और मांसपेशियाँ साफ दिखाई दे रही थीं। उसका आकार इंसान से कहीं बड़ा और डरावना था।
“कौन हो तुम? और इस लड़की को क्यों सता रहे हो?” मौलवी साहब ने कड़ककर पूछा।
“मेरा नाम हमजाद है!” जिन्न ने गर्जना की। “मुझे सत्तर साल पहले इसी कब्रिस्तान में दफनाया गया था। इस नादान लड़की ने मुझे आजाद कर दिया। इसकी खुशबू… इसका जिस्म… मेरे लिए है! या तो मैं इसके साथ रहूंगा या इसे अपने साथ ले जाऊंगा!”
मौलवी साहब और जिन्न के बीच एक भयानक जंग छिड़ गई। मौलवी साहब ने जमजम के पानी और तावीज की मदद से उसे एक खास बोतल में कैद कर लिया। बोतल बंद करते ही जिन्न की एक आखिरी चीख सुनाई दी, “तू मुझे हमेशा के लिए कैद नहीं कर सकता, मौलवी! मैं फिर लौटूंगा! जरूर लौटूंगा!”
मौलवी साहब ने राहत की सांस ली और कहा, “अब यह जिन्नात जारा को नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा। मैं इस बोतल को ऐसी जगह दफनाता हूँ जहाँ से यह कभी वापस नहीं आ सकेगा।”
जारा ठीक हो गई। सब कुछ सामान्य होता दिख रहा था। परिवार ने राहत की सांस ली।
…क्या वाकई में खतरा टल गया था? क्या मौलवी साहब उस शैतानी शक्ति को हमेशा के लिए कैद कर पाए थे?