क्या हाल है दोस्तों? आज मैं आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहा हूँ जो मेरे एक दोस्त, आदित्य, ने मुझे भेजी है। उसने कसमें खाई हैं कि ये उसकी ज़िंदगी की सच्ची घटना है और आज भी उसकी रूह को कंपा देती है। जब मैंने ये कहानी पहली बार पढ़ी, तो सच कहूँ, मेरे पूरे बदन में सिहरन दौड़ गई थी। सोचा आप लोगों के साथ भी ये अनुभव शेयर करूँ। अपनी साँसें थाम लो, क्योंकि ये हॉरर स्टोरी इन हिंदी (Horror Story in Hindi) आपको सोने नहीं देगी, ये मेरा वादा है।
ये बात आज से क़रीब पाँच साल पहले की है, जब मेरा दोस्त आदित्य, दिल्ली में अपने कॉलेज के दिनों में था। वो एक छोटे से क़स्बे से आया था और दिल्ली जैसे बड़े शहर में पढ़ाई का ख़र्च उसके लिए काफ़ी ज़्यादा था। किराया बचाने के चक्कर में, उसने और उसके दो जिगरी दोस्तों – रोहन और समीर ने – एक पुराना सा, लेकिन सस्ता मकान किराए पर ले लिया। ये मकान शहर के शोरगुल से दूर, एकदम बाहरी इलाक़े में था, जहाँ आस-पास ज़्यादा रिहायशी आबादी नहीं थी। मकान की हालत देखकर ही समझ आ जाता था कि ये कई सालों से वीरान पड़ा था। दीवारें सीलन और समय की मार से अपनी रंगत खो चुकी थीं, खिड़कियों पर धूल की मोटी परत और मकड़ी के जाले जमे थे। दरवाज़े अजीब सी चरमराते थे और छत पर काले धब्बे थे, जैसे किसी पुराने रिसाव के निशान हों। पर किराया इतना कम था कि लड़कों ने इसकी खस्ता हालत को नज़रअंदाज़ कर दिया। उन्हें लगा तीन दोस्तों के लिए ये काफ़ी जगह थी, और सस्ता भी था।
पहले कुछ दिन: एक अजीब सी ख़ामोशी – horror story in hindi
शुरुआती कुछ दिन सब ठीक ही चल रहा था। लड़के थे, नई जगह का जोश था, दिन भर कॉलेज में मस्ती करते, रात को देर तक जागते, फ़िल्में देखते और कभी-कभी तो मज़ाक में भूतों की कहानियाँ (Bhoot Ki Kahani) भी सुनाते थे। उन्हें क्या पता था कि उनकी अपनी ज़िंदगी बहुत जल्द एक ख़ौफ़नाक हॉरर स्टोरी (Horror Story) बनने वाली है। मकान में एक अजीब सी ख़ामोशी रहती थी, जो दिन में तो नज़रअंदाज़ हो जाती, पर रात होते ही और गहरी लगने लगती। हवा का एक झोंका भी जब दरवाज़ों से टकराता, तो लगता जैसे कोई धीमे से आह भर रहा हो।
रात के साये: जब दस्तक डर की थी
फिर एक रात, क़रीब दो बजे होंगे, आदित्य को बाथरूम जाने की ज़रूरत पड़ी। वो उठा, और जैसे ही अपने कमरे से बाहर निकला, उसे अपने पीछे से हल्की-हल्की आवाज़ें सुनाई दीं। एकदम फुसफुसाती हुई, जैसे कोई दबे पाँव चल रहा हो, या कुछ ज़मीन पर घसीट रहा हो। उसने सोचा रोहन या समीर होंगे, पर वो दोनों तो गहरी नींद में अपने-अपने बिस्तरों पर बेसुध पड़े थे। आदित्य ने धीरे से दरवाज़ा खोला और हॉल में झाँका। अँधेरा घना था, सिर्फ़ कोने में लगी छोटी सी नाइट लैंप की हल्की रोशनी थी, जो सायों को और भी डरावना बना रही थी। उसे लगा शायद उसने ग़लत सुना है, या नींद के कारण वहम हुआ होगा। वो बाथरूम गया और तेज़ी से वापस अपने कमरे में आ गया।
अगली रात, फिर वही आवाज़। इस बार थोड़ी तेज़ थी, और ज़्यादा साफ़ सुनाई दे रही थी। आदित्य को साफ़ लगा कि कोई छत पर चल रहा है। ऊपर की मंज़िल थी नहीं, बस एक छोटी सी छत थी जिस पर जाने का कोई सीधा रास्ता नहीं था, सिर्फ़ एक पुराना लकड़ी का रोशनदान था जो ऊपर की तरफ़ खुलता था। उसने सुबह रोहन और समीर को बताया। पहले तो वो हँसे, मज़ाक उड़ाया, “आदित्य, तू हॉरर फ़िल्में ज़्यादा देखता है क्या?” पर जब ये अजीब आवाज़ें हर रात रेगुलर होने लगीं, और कभी-कभी तो ऐसी लगने लगीं जैसे कोई छत पर नाच रहा हो, तो वो भी थोड़ा घबराने लगे। उनके चेहरों पर भी चिंता की लकीरें दिखने लगी थीं।
एक दिन, समीर ने हिम्मत करके ऊपर के रोशनदान से झाँकने की कोशिश की। अँधेरा इतना गहरा था कि कुछ भी साफ़ नहीं दिखा। पर उसे कुछ ऐसा महसूस हुआ, जो उसने कभी महसूस नहीं किया था। एक बेहद ठंडी लहर, जैसे किसी ने उसके हाथ पर बर्फीला पानी छिड़क दिया हो, या कोई अदृश्य, ठंडी हवा उसके बदन से गुज़री हो। वो एक दम से चीख़कर पीछे हटा। “यार, वहाँ कुछ है!” उसकी आवाज़ कंपकपा रही थी, और उसके माथे पर पसीने की बूँदें थीं। “कुछ बहुत ठंडा है।”
जब परछाई ने दस्तक दी: डर का शिखर
अब उन तीनों दोस्तों में डर पूरी तरह से बैठ चुका था। रातों को उनकी नींद उड़ चुकी थी। हर छोटी से छोटी आवाज़ पर वो चौकन्ने हो जाते थे। कभी-कभी लगता जैसे कोई फुसफुसा रहा हो, कभी बर्तन गिरने की आवाज़ आती, और कभी-कभी तो धीमी-धीमी सिसकने की आवाज़ें भी सुनाई देती थीं, जैसे कोई रो रहा हो।
एक रात, रोहन को पानी की प्यास लगी। वो अपनी हिम्मत बटोर कर पानी पीने के लिए किचन की तरफ़ गया। हॉल में हल्की सी रोशनी थी, पर किचन में अँधेरा था। जैसे ही वो किचन के दरवाज़े तक पहुँचा, उसने देखा, किचन के बिल्कुल बीच में एक काली परछाई खड़ी है। परछाई एक औरत की थी – लंबी, बेहद पतली, और उसके बाल खुले हुए थे जो अँधेरे में भी लहराते हुए महसूस हो रहे थे। उसकी पीठ रोहन की तरफ़ थी। रोहन की साँसें थम गईं। उसे लगा कि ये कोई सपना है, या उसकी आँखों का धोखा। उसने अपनी आँखें मलीं और दोबारा देखा। परछाई वहीं खड़ी थी। जैसे ही उसने रोहन की मौजूदगी महसूस की, वो धीरे से मुड़ी। रोहन ने देखा – उसकी आँखें गहरी, ख़ाली और बेजान थीं, उनमें कोई चमक नहीं थी। और जैसे ही उस परछाई ने रोहन की तरफ़ देखा, वो पलक झपकते ही हवा में घुल गई, जैसे कभी थी ही नहीं। रोहन की तो बोलती बंद हो गई। उसका शरीर थरथरा रहा था, और उसके गले से आवाज़ नहीं निकल रही थी। वो सीधा चीख़ते हुए आदित्य और समीर के कमरे में भागा। उसका चेहरा सफ़ेद पड़ चुका था, और उसकी आँखें डर से फ़टी हुई थीं।
“वहाँ कुछ है!” वो हाँफते हुए, मुश्किल से बोल पाया। “मैंने देखा! एक औरत थी… काली, लंबे बालों वाली… उसने मुझे देखा!”
अब उन्हें यक़ीन हो गया था कि इस मकान में कोई आत्मा रहती है। ये सिर्फ़ आवाज़ें नहीं थीं, बल्कि एक साया था, एक हकीक़त। उन्होंने अगले ही दिन मकान मालिक से बात करने की सोची। पर जब उन्होंने उससे इस अजीबोगरीब हरकतों और परछाई के बारे में पूछा, तो मकान मालिक का चेहरा पीला पड़ गया। वो कुछ देर चुप रहा, फिर बात को टालने लगा, “नहीं-नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। ये सब आपका वहम है। अगर आपको दिक़्क़त है तो आप मकान छोड़ सकते हैं।” उसकी इस बात ने उन्हें और डरा दिया। उन्हें समझ आ गया कि मकान मालिक को सब पता है, और वो इस राज़ को छुपा रहा है।
लड़के अब हर पल डर के साए में जी रहे थे, पर उनके पास कोई और सस्ती जगह नहीं थी। और वो ख़ुद को समझाते रहे कि शायद ये सच में उनका वहम है, थकान का असर है। पर ये वहम नहीं था। एक दिन, आदित्य घर पर अकेला था। रोहन और समीर अपने कॉलेज प्रोजेक्ट के लिए लाइब्रेरी गए थे। आदित्य अपने कमरे में लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था। तभी, उसे अपने बिल्कुल पीछे से किसी की साँसें महसूस हुईं। इतनी क़रीब कि उसकी गर्दन पर हवा का ठंडा झोंका महसूस हो रहा था। बिल्कुल उसके कान के पास। जैसे कोई उसके पीछे खड़ा हो। उसकी रूह काँप गई, और दिल की धड़कन तेज़ हो गई। उसने धीरे से, अपनी साँसें थाम कर, मुड़ कर देखा। और जो उसने देखा, वो उसकी ज़िंदगी का सबसे डरावना और भयानक पल था।
उसके पीछे, उसके कंधे के बिल्कुल पास, वही औरत खड़ी थी। उसके बाल बिखरे हुए थे, अँधेरे में भी उसके चेहरे की पीलापन और अंदर धँसी हुई आँखें साफ़ दिख रही थीं। उसकी आँखों में कोई चमक नहीं थी, बस एक ख़ाली-ख़ाली, बेजान सा एहसास था। और उसके होठों पर एक अजीब सी, शैतानी मुस्कुराहट थी, जो डर से ज़्यादा खौफ़नाक लग रही थी। आदित्य की चीख़ उसके गले में ही अटक गई। वो अपनी जगह से हिल भी नहीं पा रहा था, जैसे किसी ने उसे बांध दिया हो। उस औरत ने अपना हाथ धीरे से उसके कंधे पर रखा। उसका स्पर्श इतना ठंडा था कि आदित्य को लगा उसका पूरा बदन सुन्न हो गया हो, जैसे उसका ख़ून जम गया हो।
“तुम… तुम यहाँ क्यों आए हो?” उस औरत की आवाज़ में एक दर्द था, एक अजीब सी वीरानी थी। आवाज़ इतनी धीमी थी कि लग रहा था जैसे हवा में घुलकर दूर जा रही हो, पर उसकी हर एक बात आदित्य के ज़हन में उतर रही थी।