भयानक सच और पछतावा | emotional story in hindi
यह सुनकर अंकित के होश उड़ गए… उसके शरीर से जैसे जान ही निकल गई। उसके सामने एक आत्मा बैठी थी जिससे वह बातें कर रहा था। उसके भीतर भय की एक लहर दौड़ गई। वह डर जाता है कि अंकल क्या बोल रहे हैं। उसे एक पल को लगा कि अंकल शायद मज़ाक कर रहे हैं। पर उनके हाव-भाव और आँखों का खालीपन देखकर वह मज़ाक के मूड में नहीं लग रहे थे।
कुछ देर की भयानक खामोशी के बाद अंकल बोलते हैं, “तुम सही सोच रहे हो… मैं मर चुका हूँ।”

यह सुनकर अंकित के कान खड़े हो गए… मानो उसकी सारी इंद्रियाँ सुन्न पड़ गईं हों। उसके सामने एक प्रेत बैठी थी!
उसने अपनी काँपती हुई आवाज़ में कन्फ़र्म करने के लिए अंकल से पूछा… “अंकल, प्लीज़ ऐसा मज़ाक नहीं करो। आप मज़ाक कर रहे हो ना?” अंकल के चेहरे पर वही भाव थे, आँखों में वही अजीब ठंडक। और अंकल ने बोला “मैं मज़ाक नहीं कर रहा।” अंकित ने बोला “पर आत्मा तो दिखती नहीं फिर आप मुझे कैसे और क्यों दिख रहे हो?
अंकल ने बोला, “शायद हमारी भावनाएँ मैच कर गई हैं। मैं भी एक बाप हूँ और तुम भी, मैं भी अपने बेटे से मिलने के लिए तड़प रहा हूँ। और तुम भी।”
अंकित को कुछ समझ नहीं आया। उसे अंकल पर दया आने लगी, कि वह अपने बेटे से मिल नहीं पाए। और फिर अंकित को अपने बेटे देव की याद आने लगी कि देव भी अंकित का इंतज़ार कर रहा होगा। उसके मन में एक अजीब सा डर घर कर गया।
अंकित सहमते हुए अंकल के पास आया और बोला… “क्या मैं आपके लिए कुछ कर सकता हूँ?” अंकल ने बोला “नहीं बेटा, पर तुम्हें अपने बेटे के पास जाना चाहिए, वह तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है।” यह सुनकर अंकित की आँखों से आँसू आ गए और बोलता है, “हाँ, आप सही कह रहे।”
फिर अंकल ने एक रहस्यमय मुस्कान दी। बोले, “पर यही एक कारण नहीं है कि तुम मेरी आत्मा को देख पा रहे हो।”
अंकित ने हैरानी से अंकल की तरफ़ देखा, उसकी रीढ़ की हड्डी में सिहरन दौड़ गई। उसने पूछा “और क्या कारण है?”
अंकल ने एक अजीब सी मुस्कान दी और कहा… “तुम मुझे देख पा रहे हो क्योंकि तुम भी अब सिर्फ़ आत्मा हो।”
यह बात अंकित का दिमाग़ फिर से प्रोसेस नहीं कर पाया। उसे कुछ समझ नहीं आया। उसने अंकल से पूछा “मैं अब सिर्फ़ आत्मा हूँ?? मतलब?”
अंकल ने अपनी आँखें उसकी आँखों में गहराई से गाड़ दीं और बोले, “तुम अपने दुखों के बोझ से इतने दब गए हो कि यही नहीं जान पाए कि तुम मर चुके हो।”
“क्या???” ये क्या कह रहे हैं आप? अंकित का गला सूखने लगा, उसकी आँखें आश्चर्य से फटने लगीं। वह अंकल को देखता रहा… और फुसफुसाया, “क्या तुमने मुझे मार दिया बातों-बातों में?”
अंकल मुस्कुराए, और अंकित की तरफ़ देखा। और उसे बोला “तुम सीढ़ियों से गिरे थे?”
यह बात सुनते ही यह देखकर उसकी आँखें फटी की फटी रह गई। अंकित एकदम शॉक्ड हो गया उसने ‘हाँ’ में जवाब दिया। पर अंकल को यह बात कैसे पता, वह इस बात से बहुत हैरान था।
अंकित पूछता है “आपको कैसे पता ये बात और वह तो बस थोड़ी सी चोट लगी थी सर में फिर मैं उठा और चल दिया।”
अंकल फिर मुस्कुराए, पर इस बार उनकी मुस्कान में एक अजीब सा दर्द था, एक खालीपन। उन्होंने बोले “तुम उठे ज़रूर पर तुम्हारा शरीर नहीं… सिर्फ़ आत्मा। तुम्हारा वहीं मौत हो गई थी।”
यह सुनकर अंकित फिर से चकरा गया। उसे लगा कि वह किसी बुरे सपने में फँस गया है, जिससे वह निकल नहीं पा रहा। वह हकलाते हुए पूछता है “ऐसा कैसा हो सकता है… मैं नहीं मानता आप झूठ बोल रहे।”
तब अंकल ने उसे पूरा फ़्लैशबैक करवाया… कि कैसे वह बस में बैठा, कंडक्टर ने उसका टिकट नहीं बनाया, कैसे उसके पूछने पर उस महिला ने उसे अनदेखा किया, और उसके बस रोकने की बात को कैसे सबने अनसुना किया… अंकित को सब याद आने लगा। हर घटना एक-एक करके उसके दिमाग़ में कौंधने लगी। उसे याद आया बस में सवार वो चेहरे, जो बेजान दिख रहे थे… वो कंडक्टर, जिसकी आँखें काली और धँसी हुई थीं… वो ड्राइवर, जो कभी पलट कर नहीं देख रहा था। यह सब याद आने लगा, और अंकित दुख से भर गया और फूट-फूट कर रोने लगा… उसे अपने परिवार की याद आने लगी, अपने बेटे देव की याद। उसका दिल चीत्कार उठा। वह वहीं बस स्टैंड की उस सीट पर बैठ गया… एकदम शांत, शून्य।